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________________ ५० स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट । "" उब हेतु की सफलता के लिये, इस देश के सर्व साधारण लोगों से लेकर बड़े बड़े श्रीमानों तक, सब लोगों ने, अपनी अपनी शक्ति के अनुसार, द्रव्यद्वारा सहायता दी। स्मरण रहे कि जिस प्रकार की शिक्षा सरकारी कालेजों में दी जाती है उसी प्रकार की निकम्मी और निरुपयोगी शिक्षा देने के लिये उक्त कालेज स्थापित नहीं किये गये थे । लार्ड रिपन के बाद भारत सरकार की नीयत धीरे धीरे बदलने लगी। जिन महानुभावों ने हिन्दुस्थानियों को यूरप की उदार शिक्षा देने का प्रयत्न किया था उनका यह कथन था कि " जिस दिन उदार शिक्षा के द्वारा लोगों के मन सुसंस्कृत होंगे और जिस दिन वे अपने यथार्थ हक़ों को भलीभांति जानने लगेंगे, बह दिन इंग्लैंड के इतिहास में सुदिन समझा जायगा । यह बात लार्ड कर्जन को नापसंद थी। उन्होंने अपनी राजसत्ता के बल एक क़ायदा बना डाला जिससे, इस देश की शिक्षा की सब संस्थाएं सरकार के अधीन हो गई । जो प्राइवेट स्कूल और कालेज स्वतंत्र और उदार शिक्षा देने के हेतु खोले गये थे वे भी सरकार की नीति के अनुगामी होगये । ये स्कूल और कालेज, पहले ही, प्रान्टस् इन-एड (सरकारी सहायता ) के नियमों से बँध गये थे । उनकी बची बचाई स्वाधीनता, लार्ड कर्जन की कृपा से, सत्र नष्ट होगई । अब यथार्थ में ये प्राइवेट स्कूल और कालेज सरकारी या नीम-सरकारी हैं। क्या इस प्रकार के प्राइवेट कालेजों की शिक्षा से हमारे छात्रों को कभी स्वप्न में भी स्वदेशहित, स्वदेशाभिमान और स्वदेशभक्ति देख पड़ेगी ? MINSA जिस देश में, न्याय करनेवाले न्यायाधीश और शिक्षा देनेवाले गुरु राजसत्ताधिकारियों के अधीन रहते हैं, उस देश में न तो यथार्थ न्याय हो सकता है और न सत्य-विद्या प्राप्त हो सकती है। न्यायदेवता की स्वाधीनता और गंभीरता, तथा सरस्वती देवी की रमणीयता और महिमा तभीतक पवित्र रह सकती है. जबतक वह राजसत्ताधिकारियों के दास या दासी न हों। यह बात तो मनुष्य स्वभावड़ी के विरुद्ध है कि बिजयी लोग, पराजित लोगों को, राष्ट्रधर्म के स्वतंत्र तत्वों की शिक्षा दें। इन सब बातों को खूब सोच समझकर हमने यही निश्वय
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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