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________________ स्वदेशी वस्तु का स्वीकार और विदेशी वस्तु का त्याग ये बातें एकही हैं। ३५ होकर मरने देना चाहिए? क्या वर्तमान हीनता और सङ्कट के बड़े बड़े गहों को और भी गहरे बनाकर उनमें अपने तीस करोड़ बांधवों को ढकेल देना चाहिए? पाठको, आपही इस विषय का विचार कीजिये। अबतक नम्रतापूर्वक प्रार्थना करके, गिड़गिड़ाकर, भीख मांगने का जो प्रयत्न किया गया वह रत्तीभर भी सफल नहीं हुआ। क्या अब उसी उपाय का और भी अवलम्ब किया जाय? मान लीजिये, कि जब हमारे प्रस्तुत प्रयन से--विदेशी वस्तु के त्याग की हमारी प्रतिज्ञा से-इस देश के व्यापार और कारखानों की उन्नति होगी तब उस उन्नति को देखकर, मचेस्टर के व्यापारी डाह से चिल्लाने लगेंगे और हमारी सरकार देशी वस्तु पर कर लगा देगी । अब हम यह जानना चाहते हैं, कि यदि हम विदेशी वस्तु का त्याग न करें, यदि हम स्वदशी आन्दोलन न करें और यदि इस देश के व्यापार और कारखानों की उन्नति आपही आप हो जाय, तो क्या मचेस्टर के व्यापारियों के मन में हमारी उन्नति के संबंध में डाह न उत्पन्न होगी ? क्या वे लोग इस देश की वस्तु पर कर लगवाकर हमारे व्यापार को नष्ट करने का प्रयन न करेंगे? क्या इस बात की जिम्मेदारी (AEHATIHAE) कोई ले सकता है ? सच बात तो यह है कि अपनी राजसत्ता का दुरुपयोग करके भारतवर्ष के व्यापार को नष्ट करने का अंगरेज लोगों ने जो प्रयत्न किया (और जो भविष्य में किया जायगा) उसका कारण, उन लोगों की अनुचित और अन्यायी स्वार्थ-बुद्धि ही है। जबतक उनकी यह स्वार्थ-बुद्धि, यह लोभ, कायम है तबतक वे लोग हमारे व्यापार और कारखानों की उन्नति से कदापि प्रसन्न न होंगे; वे हमारे व्यापार के नाश ही का प्रयन करेंगे; चाहे वह उन्नति हमारे 'स्वदेशी' से हो, चाहे 'बायकाट' से हो और चाहे बिना स्वदेशी और बिना बायकाट की सहायता के, पापही श्राप, हो । हां, इसमें सन्देह नहीं कि अन्त में इस स्वार्य-बुद्धि और लोभ का परिणाम न तो इंग्लैण्ड को सुखदायक होगा और न हिंदुस्थान को । ऐसी अवस्था में यदि हम 'स्वदेशी' और 'बायकाट' की सहायता से अपने देश के व्यापार और कारखानों की उन्नति करने का प्रयत्न करें तो डर किस बात का है ? जो परिणाम होनेवाला ही है वह तो होगा ही। फिर हम लोगों को अपने प्रयन से
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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