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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. विपरीत इसके हरएक श्रावकका यह नियम रक्खा है कि वह स्नान करे और शरीरको धोकर निर्मल और स्वच्छ रहै. यह दशलाक्षणीधर्म आज्ञाओंमें से एक आज्ञा है । पक्के जैनी सदा स्नान करते हैं, वे केवल एकबार ही स्नान नहीं करते बल्कि मलमूत्र क्षेपन करनेके पीछे हरबार स्नान करते हैं। जो लोग जैनियोंको मलीन कहते हैं, निस्सन्देह उनका ख्याल यथार्थ नहीं है, वे जैनियों के साथ बड़ा अन्याय करते हैं । यह सत्य है कि जैनियोंमें एक सम्प्रदाय है जिसको दंडिया कहते हैं और जो ' अहिंसापरमोधर्म, के उमलको अंततक लेगई है। इस सम्प्रदायके गुरु मुहपर पट्टी बांधते हैं जिससे उनका यह अभिप्राय है कि जब वे बोलें अथवा श्वास लें तो कोई जीव नहीं मरजाय; वे ' यानी ढूंढियाओंके गुरु, मलीन वस्त्र धारण करते हैं और स्नान भी नहीं करते हैं परंतु उनकी संख्या बहुत थोड़ी है वे श्वेताम्बर जैनियोंकी एक छोटीसी शाखा है। जैनियोंकी दो बड़ी सम्प्रदाय अर्थात् दिगम्बरों और सम्बेगी श्वेताम्बरोंको टूड़ियोंके साथ नहीं मिला देना चाहिये. उनका अंदाज उनहींके उसूलोंसे करना चाहिये जिनमें इस बातपर बड़ा जोर दियागया है कि हमको अपना शरीर पवित्र और निरांगी रखना चाहिये ।। ___ अब मुनिके चारित्रका थोड़ासा कथन करता हूं और इसके पश्चात् मैं इस व्याख्यान .. को समाप्त करदूंगा । दिगम्बर जैन मुनियोंको जंगलमें नग्न रहना चाहिये, मुनिका चारित्र __भूमिपर सोना चाहिये, अपने सामने चार हाथ प्रमाण ( तक ) जमीन पर दृष्टि डालकर सावधानतासे चलना चाहिये और ४६ दोष और ३२ अन्तरायोंको टालकर दिनमें एकबार श्रावकके घर भोजन करना चाहिये उनका यह भी नियम है कि अपने केशोंको लंचन करें २२ प्रकारकी परीसह सहन करें और चौदह (१४) प्रकार का अंतरंग और दश १० प्रकारका बहिरंग परिग्रह त्यागकर निग्रंथ बने और अपना सारा समय धर्मध्यान वा शुलध्यान में व्यतीत करे । श्वेताम्बर जैनसाधु सफेद वस्त्र धारण करते हैं वस्तीमें रहते हैं और शय्यापर सोते हैं शुक्लध्यान आत्मध्यानको कहते हैं, धर्मध्यानमें देशलाक्षणी धर्म, बारह प्रकारतप, तेरह प्रकार चारित्र, छह आवश्यकता और बारह अनुप्रेक्षा वा भावना शामिल हैं । यथार्थमें देखा जाय तो जनसाधुका सारा समय पिछले कर्मोंका नाश करने, नये कम्मोंके द्वारके, रोकने और अपनी आत्माको कर्मरहित करनेमें व्यतीत होता है। मेरी इच्छा है कि १ क्षुधा, तृष्णा, शीत, उष्ण, उसमशक, नाम, अरति, स्त्री, चो,आसन,शयन,दुर्वचन,क्धबंधन,याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा अज्ञान और अदर्शन । २ मिथ्यात्व, वेद, राग, द्वेष, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, मान, माया और लोभ । ३ क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, दास, दासी, कुष्य और भांड । ४सामायिक, वंदना, स्तवन, प्रतिक्रमण. प्रत्याख्यान और कायोत्सग ।
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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