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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान, महोक्षं वा महाजं वा श्रोत्रियायोपकल्पयेत् ॥ अर्थ- हमको वैदिकणकेलिये एक मोटे बैल वा बकरेकी बलि देनी चाहिये ॥ फिर वह एक श्रुतिका प्रमाण देकर कहता है: मागामनागामदितिंवधिष्ठाः ४६ अर्थ - निरपराध गौको मत मारो ॥ इस जगह नीलकंठ कहता है कि स्मृतिसे श्रुति बलवान् है क्योंकि उसमें " निरपराध " शब्द आया है ॥ चार्वाक भी जीवहिंसा विरोधी थे क्योंकि वे यह उपदेश करते थेपशुश्चेन्निहतः स्वर्गे ज्योतिष्टोमे गमिष्यति ॥ स्वपिता यजमानेन तत्र कस्मान्नहिंस्यते ॥ १ ॥ अर्थ-" यदि ज्योतिष्टोमयज्ञ में मारा हवा स्वयं स्वर्गमं च जाता है तो य करनेवाला अपने पिताको ही बलि क्यों नहीं देता फिर वे कहते हैं चापाक दर्शन मांसानां ग्वादनं तद्वन्निशाचरसमीरिणम | अर्थ- " जब कि मांसभक्षणको आता इसी प्रकार निशाचरीने दी श्री महाशयो ! शोकका विषय है कि पुराने भारतवर्षके वैदिक मतका इति हास तो लिखा परन्तु किसी भी दूसरे मतोका और विशेषकर उन मतका जो कहते हैं कि: माहिम्यान सर्वाभृतानि इतिहास बनानेके लिये हालात और कथायें इकट्ठी नहीं किया और किसीने अबतक इस बातका निश्चय नहीं किया कि कौन २ सम्प्रदाय तो वैदिक मतको मानते थे और कौन २ दूसरे मतोंको और हरएक मतपर चलनवालांकी संख्या कितनी २ थी । यह कह देना बिल्कुल विचारके विरुद्ध हैं कि पुराने भारतवर्षमें केवल वैदिकमत ही था । ऐसी २ वातोंका मानना भयकारी हैं । यह सम्भव है कि वैदिक और वेदविरुद्ध मतोका समान प्रचार हो या यह भी कौन कहसक्ता हैं कि वेदको न माननेवालोंकी संख्या वैदिकमत पर चलनेवालों से अधिक न थी । परन्तु साक्षीके न होनेसे हमको किसी नतीजेके निकालने का अधिकार नहीं हैं । आप जानते हैं कि भारतवर्षमें अब बौद्धमत प्रायः नष्ट होगया है परन्तु इससे क्या आप यह भी कह सके हैं कि बौद्धमत भारतवर्षकी एक सीमासे दूसरी सीमातक कभी नहीं फैला था ? यथार्थ यह बात कि इस समय में कोई मत भारतवर्षम नहीं है इसबातको मानलिये ठीक हेतु नहीं हैं कि निश्चयमें उस मतका प्राचीन समयमें कभी प्रचार नहीं <t *:
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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