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________________ APPENDIX II 429 वंशदोळ पाणराजनातन मग शंकरगंडनातन मगनप्पुवराजनातन मगं शंखपययनातन मगं गोम्मरसनातन मगनसगमस्सनातन मगं [1] स्वस्ति समधिगत पञ्चमहाशब्द महासामंताधिपति जयधीर भुवनैकरामनभिमानधवळ रट्टरमेरु राजभूरिश्रय विद्विष्टनारायण सत्यार्णवं धर्मरत्नाकर श्रीमत् शंकरगण्डरसं कुपणदोळ् तम माडिसिद जयधीर जिनालयद तळवृत्तिगे पोलनं बेडिदोडे [1] चळुक्यवंशदोळ् गोवणनातन मगं राजनातन मगं बिक्कियण्णनातन मगं सूद्रकनातन मग गोग्गियातन मगं [1] स्वस्ति समधिगत पञ्चमहाशब्द महासामन्तं [तेजोर्णव सम्मनदाण्म सारलोळ्ळिद] गुणशुद्धमार्ग पगंगे बलगण्डं नुडिदन्ते गण्डं कृतयुगगळं श्रीमत् राहय्यं शूरस्थगगद श्रीनन्दिभटारर शिप्यर् विनयनन्दि सिद्धान्तद भटाररवर शिष्यर नागनन्दिपंडित भटारगें उत्तरायणसंक्रान्तियोळ् कालंकर्चि कुक्कनूवत्तरोळगण ..... ...... तन्न परवरियप्प सान्त वोलनं मूनूरु मत्तरं मण्साम्यमागे कोर्ट [] स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धराम् [1] षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः ॥ [१] सामान्योयं धर्मसेतुपाणां काले काले पाळनीयो भवद्भिः [1] सर्वानेतान्भाविनः पार्थिवेंद्रान् भूयो भूयो याचते रामभद्रः ॥ [२] हिन्दी सारानुवाद--अनेक विरुदधारी अकालवर्ष कन्नरदेव (राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय) का राज्य उत्तरोत्तर अभिवृद्धिमान् था। रक्ताक्षि संवत्सर एवं शक संवत् ८८७ में यादववंशमें उत्पन्न अनेक विरुदधारी महासामन्त शङ्करगण्डरस (जिसके पूर्वजोंके लेखमें नाम दिये हैं) ने कोपणमें अपने द्वारा निर्मापित जयधीर जिनालयकी नित्यप्रतिकी आवश्यकताओंकी पूर्ति के लिए भूमिकी प्राप्तिके लिए प्रार्थना की। चालुक्यवंशके अनेक बिरुदधारी महासामन्त राय्य (जिसके पिता प्रपितामह आदिका उल्लेख लेखमें है ) ने उत्तरायण संक्रान्तिके समय सूरस्थ गणके मुनि श्रीनन्दि भटारके प्रशिष्य और विनयनन्दि सिद्धान्त भटारके शिष्य नागनन्दि पण्डित भटारके पाद प्रक्षालनकर कुक्कनूर ३० में स्थित अपनी जागीरसे ३०० मत्तर प्रमाण कृष्यभूमिको स्वामित्वके अधिकार पूर्वक जिनालयको दे दी। दान की सुरक्षाके श्लोक।। [नोट-यह लेख चालुक्यवंशके तत्कालीन राजनीतिक एवं धार्मिक जीवनके अनेक विषयों पर प्रकाश डालता है] [४७] हल्गेरीगांवके भीतर एक पत्थरपर-प्राचीन कन्नडमें-त्रुटित ( लगभग ८ वी शताब्दि इ.) स्वस्ति [1] श्रीविजयादित्यसत्याश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर भटार[को] पृथ्वीराज्यदन्दु कोपणद [मूरु प]तियुं गुत्तियोडेयर्नु गरोजनुं करणमागे मदेवळेरे ...... हिन्दी सारानुवाद-पृथ्वीवल्लभ, महाराजाधिराज, परमेश्वर भट्टारक श्रीविजयादित्य सत्या श्रय जब कि पृथ्वीपर शासन कर रहे थे और जब कोपणका शासक एवं गुत्तिका स्वामी गरोज, सचिव के पद पर था ..... । [४८] अरकेरी गांवके भीतर बसवण्णमंदिरमें एक पत्थरपर-प्राचीन कन्नडमें जीर्ण ___ (विकारि संवत्सर [शक ८६१] = इ. स. ९४०) स्वस्त्यकालवर्षदेव श्रीपृथ्वीवल्ल......राजाधिराज परमेश्वर... ... ...श्रीमत् कारदेव प्रवर्धमानवि ... मुत्तरोत्तरमभिवृद्धिगे सलुत्तिरे [1] सत्यवाक्य [को गुणिवर्म धर्ममहाराज कुवळाळपुरवरेश्वर ...... पेर्मानडिगळ् देवर् ... ... ... वाडि तांबत्तारुसासिर ......... मुरुमं दुष्ट ... ......सिरे 1] समधिगत ... ... ... शिष्टजनवल्स..,
SR No.011025
Book TitleJainism in South India and Some Jaina Epigraphs
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP B Desai
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1957
Total Pages495
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size33 MB
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