SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वर्ण गिरि। ( 266 ) सं० १५०१ फागुण सुदि दिने महतियाण शेजाट गोत्रे सं० देवराज सं० पीमराज पुत्र सं० सिवराजेन । भार्या सं० माणिकदे पुत्र सं० रणमल धर्मदास सकुटुम्वेन भी मादिनाप विवंकारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिन वर्द्धन सूरिप? श्री जिन चन्द्र सूरि पहे श्रीजिन सागरसूरीणां निदेसेन वाचकाचार्य शुम शील गणिभिः श्रीखरतर गच्छे । वैभार गिरि। (267 ) सं० १५२१ आषाढ़ सुदि १३ खरतर गणेश भीजिन चन्द्रसूरि विजय राज्ये तदादेशे श्रीवैभार गिरी मुनि मेकणा मि०-- श्री कमल संयमोपाध्यायः स्वगुरु श्री जिन मुद्र सूरि पादुके प्र.का. श्री माल वं० प्रीपू पुत्र ठ० छीतमल पावकेण । ( 258 ) सं० १५२७ आषाड सुदि १३ श्रोजिन चंद सूरिणामादेशेन श्री कमल संयमोपाध्यायः पक्षाणालि भद्र मूर्ति--का० प्र० धीमसिंह (?) पावकेण । (259 ) ॐनमः ॥ सम्वत १८२६ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्षे १३ तियो श्री आदिनाथ जिन चरण कमले स्थापित हुगली वास्तव्य ओसर्वशे गांधि गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चंदेन राजगृहे वैभार गिरे जीर्णोद्धार करापितं ॥ स्वपरयोः शुभाय ॥ श्री॥
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy