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________________ ( २७३ ) श्री अंजारा पार्श्वनाथ । ( 930 ) स्वति भी संवत् १६५२ वर्षे कार्तिक वदि ५ बुधे येषां जगद्गुरुणां संवेग वेराग्य सौभाग्यादि गुणगण अवणांत् घमस्कृतमहाराजाधिराज पाति शाहि श्री अकराअिघानः गुर्जरदेशात दिल्ली मंडलेश बहमानमाकार्य धर्मोपदेश कर्णन पूर्वकं पुस्तक कोश समर्पणं डायरामिधान महासरो मत्स्यवध निवारणं प्रति वर्ष षडमासिकामारि प्रवर्तन सर्वदा श्रीशत्रुज तीर्य मुंडकाभिधान कर निवर्तनं जीजियाभिधान करकर्तन निज सकल देश दानमृत्त स्वमी वनसदेव वंदय रुण निवारणं वित्यादि धर्म कृपानि प्रवतं तेषां भी शपूजये सकल देश संघयुत कृत यात्राणां भाद्रपद अक्लंकादशी दिने जात निवाणां शरीर संस्कार स्छानासव फलित सहकारणां श्री हिर विजय सूरिश्वराणां प्रति दिन दिव्य नाद्यनाद श्रवण दीप दर्शनादिकै जीय प्रमायाः स्तूप सहिताः पादुका: कारिताः५० मेधेन आर्या लाडकी प्रमुख कटुव यतेन प्रतिष्ठिाश्म तपागच्छाधिराजे. महारक श्री विजयसेन सूरिभिः ओं श्री विमल हर्प गणि ओं श्री कल्याण विजयगणि ओं श्री सोम विजय गणिभिः प्रणता भव्य जनैः पुज्यमानाश्चिरं नन्द। लिखता प्रशस्तिः पद्माणकगणिना भो उनत मगरे शुभं भवतु ॥ श्री कापड़ा पाश्र्वनाथ । ( 991) सेंवत् १६०८ वर्षे वेगाखसित १५ तिथौ सोमवारे स्वाती महाराजाधिराज महाराज श्रो गजसिंह विजय राज्ये केशेरायलारवण संताने मांडागारिक गोत्रे अमरा पुत्र भांना केन भार्या भगतादेः पुत्र रत्न नारायण नरसिंह सोठका पौत्र ताराचंद खगार-नेमि दासादि
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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