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________________ ( १५०) ( 643 ) संवत १७६५ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्ष पंचमी तियो सोमवासरे महारक श्री विजय रतकेश्वर तपागच्छे काष्ठासंघे श्रा०प० दे० वृ. शा० मुहता गोत्रे मुहताजी श्रीरामचंद्र जी तस्यमार्या बाई सूर्यदेवि तस्यात्मज मुहताजी श्री सोमाग चंद्रजी मुहताजी श्री सातु जी भाई मुहताजी श्री हरजीजी श्रीपार्श्वनाथ जिन विवं स्थापितं । श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ प्रशस्ति । ( 644 ) ॥ ॐ ॥ प्रणग्य परया भक्तया पद्मावत्याः पदाम्बुजं । प्रशस्तिल्लिख्यते पुण्या कविकेशर कीर्त्तिना ॥१॥श्रीअश्वसेन कुल पुष्पक रथजानुः । वामांग मानस विकासन राजहंसः ॥ श्रीपश्र्वनाथ पुरुषोत्तम एष भाति । घुलेव मंडनकरा करूणा समुद्रः ॥२॥ श्री मज्जगत्सिंह महीश राज्ये । प्राज्यो गुणे जर्जात ईहालयोयं ॥ आपुष्पदत्त स्थिरसामुपैतु। संपश्यतां सर्व सुख प्रदाता ॥३॥ __ दोहा। सुर मन्दिर कारक सुखद सुमतिचंद महा साधः । तपे गच्छमें सप जप तणो उयत उदधी अगाधः ॥ ४॥ पुन्यथाने श्रीपार्श्वनो पुहवी परगट कीधः । खेमतणो मनपा तिसु लाहो भवनो लीध ॥ ५॥ राजमान मुहता रतन चातुर लषमी चंद । उच्छव किंधा अति घणा आणिमन आनन्द ॥६॥ दिल सुषगोकल दासरे की प्रतिष्ठा पाम । सारे ही प्रगटपो सही जगतिमें असवास ॥ ७ ॥ सकल संघ हरषित हूओ निरमल रविजिन नाम राषो मुनि महंत सरस करता पुण्य सकाम ॥८॥ कवित्त । सांतिदास सचितसंत दावडा लषमी चंदहः । संघ मनुष्य सिरदार सहस किरण सुषके कंदहः ॥वल्लभ दोसी वीर धीर जिन धर्म धुरंधरः । मुलचंद गण मूलहीर धाया उरगुणहरः ॥ सकल संघ सानिधकरः सुमतिचंद महासाधः। पास सदन कियो प्रगट
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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