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________________ (११) ( 414 ) सं १५६२ वर्षे वैशाष सु. १० रवी श्रीमाल मउवीया गोत्रे सा. परसंताने सा. पहराज पुत्र सा० ईसरेण मा. तिलकू पु० त्रिपुर दास युतेन पार्श्वनाथ विवं स्वपुण्यार्थ कारितं । प्र. श्री खरतर गच्छे भी जिन विलक सूरिप० श्री जिनराज सूरि पढे श्रीभिः ॥ श्रीकुशलाजी का मन्दिर-रामघाट । ( 415 ) सं० १३७६ ज्येष्ठ वदि ७ गुम दिने श्रीषंडेरकीय गच्छे श्रीवाहड़ मार्य धीरु पु० धरा ---मयणल्ल---णिग मार्या केल्हण सहितेन विवं कारितं प्र० श्री सुमति सूरिभिः । ( 416 ) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० गुरी उके० व० सा. रेडा भार्या रण श्री पुत्र पद सादा जीतकेन श्री अंचल गच्छेश श्री जय केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री संभवनाथ विवं का. प्रतिष्ठितं च ॥ श्री॥ ( 417 ) सं० १५.६ वै० वदि. ११ शुक्रे श्री कोरंट गच्छे श्री नवाचार्य संताने उवएश वंशे डागलिक गोत्रे साह धनापु० स०पासवीर मार्या संपूरद नाम्न्या निज मेयोयं श्रीकुंचनाथ विवं कारापितं प्र० श्रीकक्क सूरिप सद गुरु चक्रवर्ति महारक श्री सावदेव सरिमिः। ( 418 ) सं० १५१६ वर्षे भाषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे ठ. नाग राज सु० लडू मार्या धर्मिणि सु० सं० भी केवल दास मार्या वीर सिंधि पु० स. सूर्यसेन श्रावकेण श्री कुंथुनाथ विवं कारितं. प. श्री खरतर गच्छे श्री जिन सागर सूरि पहूँ श्रीजिन सुन्दर सूरि पर भी जिन हर्ष सूरिभिः॥
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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