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________________ :२: अमर रहेगा धर्म हमारा जन-जन मन अधिनायक प्यारा, विश्व विपिन का एक उजारा, असहायों का एक सहारा, सब मिल यही लगायो नारा ।। धर्म धरातल अतुल निराला, सत्य, अहिसा स्वरूप वाला, विश्व-मैत्री का विमल उजाला, सत्पुरुपों ने सदा रुखारा ॥१॥ व्यक्ति-व्यक्ति में धर्म समाया, जाति-पांति का भेद मिटाया, निर्धन, धनिक न अन्तर पाया, जिसने धारा, जन्म सुधारा ॥२॥ राजनीति से पृथक् सदा है, जग-झंझट से धर्म जुदा है, मोक्ष-प्राप्ति का लक्ष्य यदा है, आत्म-शुद्धि की वहती धारा ॥३॥ आडम्बर में धर्म कहां है, स्वार्थ-सिद्धि में धर्म कहां है, शुद्ध साधना धर्म वहां है, करते हम हर वक्त इशारा ||४|| लय-बना रहे आदर्श हमारा ७४) [ श्रद्धेय के प्रति
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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