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________________ असहयोग आन्दोलन छेडा, शिथिलाचार समूल उखेडा, पुण्य-पाप का किया निवेडा, वह मधुरी तान सुना जा। तू मन मन्दिर मे आजा ।। भगवन् महावीर की भाति, की थी सवल अहिंसक क्रान्ति, दूर हुई दुनिया की भ्रान्ति, वह शान्ति-स्रोत वहा जा। तू मन मन्दिर मे आजा ।। अपनाई असली आजादी, पराधीनता व्याधि मिठादी, जिससे कभी न हो वरवादी, वह सादी रीत सिखाजा। तू मन मन्दिर मे आजा ।। सघ-सगठन की जो शक्ति , आध्यात्मिक अनुभव अभिव्यक्ति, धर्म, कर्म की विमल विभक्ति, फिर इस युग मे दिखला जा। तू मन मन्दिर मे ग्राजा ॥ ऐक्य ऐक्य सब जन चिल्लाते, भरसक प्रवल प्रयास उठाते पर पग-पग असफलता पाते, अव उन्हे सफल बनवा जा। तू मन मन्दिर में प्राजा ॥ सहनशील मक्ट सहने मे, वहनशील मयम वहने में, निर्भय सही बात कहने मे, वह विभुता फिर विकसाजा। तु मन मन्दिर में प्राजा ।। [२७
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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