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________________ ७४४ प्रश्नों के उत्तर स्थ विद्या भूलने लगी : जैनन्द्र प्रवचन के इस ह्रास को रोकने के लिए जैनमुनिराजों ने एक वृहत्सम्मेलन का आयोजन किया। इस : के प्रधान प्राचार्यवर श्री स्थूलिभद्र जी महाराज बनाए गए । श्री स्थूलिभद्र जी महाराज की देखरेख में जिन मुनियों को जो बागम- . पाठ याद थे, उन सब का संकलन किया गया । यह पागमसाहित्य: । पूर्व की भांति अंग और उपांगर के नाम से निर्धारित था। तदनन्तर पुनः दुर्भिक्ष पड़ा, उस दुर्भिक्ष में जैन-मुनियों का काफ ह्रास हुआ । प्रवचन-सुरक्षा के लिए मुनिराज श्री स्कन्दिल जी महाराज की अध्यक्षता में पुनः एक मुनिसम्मेलन मथुरा में बुलाया गया । और पूर्व की भांति आगमों का संरक्षण किया गया । काल की विचित्रता से तीसरो वार दुर्भिक्ष ने देश को फिर अाक्रांत कर लिया। . अब कि निर्ग्रन्थ प्रवचन को सुरक्षित रखने के लिए श्री देवद्धिगरणी क्षमाश्रमण ने वलभी नगरी में मुनिवरों का एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में भी पूर्व की भाँति सभी आगमों का संकलन किया गया, किन्तु अबकि वार उसे मौखिक नहीं रहने दिया, मुनिराजों को जितने आगमस्थल स्मरण थे उन सब को अंग, उपांग आदि के रूप में लिपिबद्ध करवा दिया गया। और उन की अनेकों प्रतियां लिखवा डाली, योग्य-योग्य स्थानों पर उन को भिजवाकर आगम. . साहित्य की अनमोल निधि को सदा के लिए सुरक्षित करवा दिया।... वही आगमसाहित्य आज हमारे सामने है और इसी को जैनजगत अपना आध्यात्मिक आधार मानकर चल रहा है। ... . xअंगों के विषयों को स्पष्ट करने के लिए श्रुत-केवली या पूर्वधर आचार्यों द्वारा रचे गए आगम उपांग कहलाते हैं । उपांग १२ होते हैं। इन का नाम-निर्देश पीछे पृष्ठ ७१४ की टिप्पणी में किया जा चुका है । .....
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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