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________________ ६८२. प्रश्नों के उत्तर : विच्छेद कर दिया । स्वयं श्री स्थूलभद्र जी महाराज को इस दुर्घटना का हार्दिक खेद था किन्तु भवितव्यता के योगे क्या वश चलता है ? इस घटना से स्पष्ट हो जाता है कि श्री भद्रबाहु स्वामी ज्ञान. के सागर थे, और अपने युग में उनका अद्वितीय व्यक्तित्व था । ८- पूज्य श्री स्थूलिभद्र स्वामी प्राचार्यदेव भद्रबाहु का प्राचार्यत्व श्री स्थूलिभद्र जी म० ने सम्भाला । ये महामन्त्री शकंडाल के प्रिय पुत्र थे । कोशा वेश्या से ग्रत्यधिक स्नेह था । किन्तु माता-पिता के आकस्मिक निधन ने इन को वैरागी बना दिया । वैराग्य-सरोवर में गोते लगाते हुए ग्रांप आचार्यवर श्री संभूति विजय जी के पास दीक्षित हो गए। दीक्षा के बाद आप ने कोशा वेश्या का भी उद्धार किया, उसके घर में एक चातुर्मास करके उसे श्राविका बनाया । श्री स्थूलिभद्र जी महाराज के अनन्तर चार पूर्व, प्रथम संहनन और प्रथम संस्थान का विच्छेद हो गया । श्रवसर्पिणी. काल का प्रभाव दिनों-दिन आगे बढ़ रहा था, उसी के कारण शारीरिक संहनन और संस्थान में भी ह्रास होना प्रारंभ हो गया । * : हड्डियों की रचना - विशेष को संहनन कहते हैं । ये छ: होते हैं । इन में प्रथम वज्रऋषभनाराच संहनन है । यह संहनन सब से, मज़बूत और वज्र जैसा शक्ति-सम्पन्न संहनन होता है ।. शरीर के आकार को संस्थान कहते है । ये भी छ: प्रकार के होते हैं । इन में प्रथम समचतुरस्र - संस्थान है । पालथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों, अथवा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस शरीर के सम्पूर्ण अवयव ठीक प्रमाण वाले हों उसे समचतुरस्र - संस्थान कहते हैं
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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