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________________ किसी का कोई भी पारिभाषिक अभिमत रह रहा हो, किन्तु . जनसाधारण इन समस्त शब्दों से सामान्यतया परमात्मा का ही बोध प्राप्त करता है । ... . ईश्वर के तीन रूपऊपर की पक्तियों में स्पष्ट कर दिया गया है, वैदिकदर्शन के यौवनकाल में ईश्वर शब्द एक विशिष्ट और पारिभाषिक अर्थ का बोधक रहा है, किन्तु अन्तिम शताब्दियों में इस का वह रूप परिवर्तित हो गया है । अव तो यह सामान्यतया परमात्मा का निर्देशक हैं। ग्राज सभी आत्मवादी दर्शन ईश्वर को मानते हैं । कोई आत्मवादी दर्शन ईश्वर की सत्ता से इन्कार नहीं करता है। सभी इसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। सामान्य रूप से सभी आत्मवादी दर्शन ईश्वर को मानते हैं, किन्तु सैद्धान्तिक और साम्प्रदायिक दृष्टि से ईश्वर-सम्बन्धी गुणों में वे थोड़ा-थोड़ा मतभेद रखते हैं । इसी मतभेद को ले कर आज ईश्वर के सम्बन्ध में तीन विचार-धाराएं उपलब्ध होती हैं । वे तीनों विचारधाराएं संक्षेप में इस प्रकार हैं- .. १-ईश्वर एक है, अनादि है, सर्वव्यापक है, सच्चिदानन्द . . है, घट-घट का ज्ञाता है, सर्वशक्तिमान है, जगत् का निर्माता है, भाग्य का विधाता है, कर्मफल का प्रदाता है। संसार में जो कुछ होता है, वह सब ईश्वर के संकेत से होता है। ईश्वर पापियों का नाश करने के लिए तथा धार्मिक लोगों का उद्धार करने के लिए कभी न कभी, किसी न किसी रूप में संसार में जन्म लेता है, वैकुण्ठ से नीचे उतरता है और अपनी लीला दिखा कर वापिस वैकुण्ठ-धाम में जा विराजता है। ईश्वर का यह एक रूप है, जिसे आज हमारे सनातनधर्मी
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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