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ईश्वर शब्द एक विशेष अर्थ में रूढ़ था । उस समय जगत्कर्तृत्व आदि विविध शक्तियों की धारक महाशक्ति को ही ईश्वर के नाम से व्यवहृत किया जाता था, किन्तु अन्तिम शताब्दियों से ईश्वर शब्द सामान्यतया परमात्मा का कुछ निर्देशक बन गया है । ईश्वर शब्द का उच्चारण करते ही मनुष्य को सामान्य रूप से परमात्मा का बोध होता है । ग्राज भाग्यविधाईश्वर के उच्चारण करने पर जगत् की निर्मात्री, त्री, कर्मफलप्रदात्री तथा अवतार-ग्रहित्री किसी शक्ति- विशेष का बोध नहीं होता है । ईश्वर एक है, सर्व - व्यापक है, नित्य है, आदि बातों का भी आज ईश्वर शब्द परिचायक नहीं रहा
। आज तो ईश्वर शब्द सीधा परमात्मा का निर्देश करवाता है । फिर चाहे कोई उसे किसी भी रूप में स्वीकार करता हो । ईश्वर शब्द सामान्य रूप से परमात्मा का निर्देशक होने के कारण ही ग्राजसर्वप्रिय वन गया है । ग्रात्मवादी सभी दर्शनों ने ईश्वर शब्द को अपना लिया है, ग्रात्मवादी सभी दर्शन ईश्वर को आदरास्पद स्वीकार करते हैं । जैनदर्शन जो सदा अनीश्नरवादी कहा जाता रहा है और जिस ने ईश्वर शब्द को कभी अपनाया ही नहीं हैं तथापि आज उस के अनुयायी सहर्ष ईश्वर का नाम लेते हैं, अपने को ईश्वरवादी कहने में ज़रा संकोच नहीं करते हैं । कारण स्पष्ट है कि ईश्वर शब्द आज वैदिकदर्शन का पारिभाषिक शब्द नहीं समझा जाता है । अव तो सामान्य रूप से वह परमात्मा का, सिद्ध का, बुद्ध का निर्देशक बन गया है । आज ईश्वर, परमात्मा, सिद्ध, वुद्ध, गाड (God), खुदा ग्रादि सभी शब्द समानार्थक समझे जाते. हैं । सैद्धान्तिक और साम्प्रदायिक दृष्टि से इन शब्दों के पीछे
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