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________________ सत्तम सत (नवमो उद्देसो) ३०७ पडिनिक्खमित्ता एगतमत' अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रह ठवेइ, ठवेत्ता रहापो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता तुरए मोएइ, मोएत्ता तुरए विसज्जेइ, विसज्जेत्ता दन्भसथारग सथरइ, सथरित्ता दव्भसथारग दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्याभिमुहे सपलियकनिसण्णे करयल' परिग्गहिय दसनह सिरसावत्त मत्थए अलि ° कटु एव वयासी-नमोत्थु ण अरहताण भगवताण जाव' सिद्धिगतिनामधेय ठाण सपत्ताण, नमोत्थु ण समणस्स भगवो महावीरस्स आदिगरस्स जाव सिद्धिगतिनामधेय ठाण सपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, वदामि ण भगवत तत्थगय इहगए, पास मे से भगव तत्थगए' इहगय ति कट्ठ वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-पूवि पि ण मए समणस्स भगवो महावीरस्स अतिए थलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, एव जाव' थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणि पि ण अह तस्सेव भगवो महावीरस्स अतिए सव्व पाणाइवाय पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाव' मिच्छादसणसल्ल पच्चक्खामि जावज्जीवाए। सव्व असण-पाण-खाइम-साइम-चउव्विह पिाहार पच्चक्खामि जावज्जीवाए। ज पि य इम सरीर इट्ट कत पिय जाव" मा ण वाइयपित्तिय-सेभिय-सण्णिवाइय विविहा रोगायका परीसहोवसग्गा फुसतु त्ति कटु° एय पि ण चरिमेहि ऊसास-नीसासेहि वोसिरिस्सामि त्ति कटु सण्णाहपट्ट मुयइ, मुइत्ता सल्लुद्धरण करेइ, करेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहि पत्ते आणुपुवीए" कालगए। वरुणनागनत्तुय-मित्त-पद २०४ तए ण तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स एगे पियबालवयसए रहमुसल सगाम सगामेमाणे एगेण पुरिसेण गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे 'अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु वरुण नागनत्तुय रहमुसलामो सगामाप्रो पडिनिक्खममाण पासइ, पासित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता जहा वरुणे जाव" तुरए विसज्जेति, पडसथारग दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे" १ एगत (क)। ८ स० पा०-एव जहा खदओ जाव एव । २ स० पा०-करयल जाव कटु । है भ० ११३८४। ३ ओ० सू० २१ । १०. भ० २१५२। ४. ओ० सू० २१ । ११ पुन्वि (ता)। ५. पासइ (ता)। १२ स० पा०-अत्थामे जाव अधारणिज्जमिति ६. स० पा०-तत्थगए जाव वदइ । १३. भ० ७२०३। ७. भ० ७।३२। १४. स० पा०-पुरत्थाभिमुहे जाव अजलिं ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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