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________________ ३०६ ० • दामेण छत्तेण धरिज्जमाण, अणेगगणनायग'- दडनायग- राईसर-तलवरमाडविय- कोडुविय - इव्भ सेट्ठि सेणावइ सत्यवाह - दूय - सविपालसद्धि' सपरिवुडे मज्जणघराम्रो पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला, जेणेव चाउरघटे प्रासरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट ग्रासरह दुरुहइ', दुरुहित्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरगिणीए सेनाए सद्धि सपरिवुडे, महयाभडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव रहमुसले सगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसल सगाम श्रोयाए । o १६७ तएण से वरुणे नागनत्तुए रहमुसल सगाम प्रोयाए समाणे प्रयमेयारूव अभिग्गह अभिगेण्हड – कप्पति मे रहमुसल सगाम सगामेमाणस्स जे पुव्वि पहणइ से पडिहणित्तए', अवसेसे नो कप्पतीति प्रयमेयारूव अभिग्गह श्रभिगेण्हइ ग्रभिगेहेत्ता रहमुसल सगाम सगामेति ॥ १६८ तए ण तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसल सगाम सगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए 'सरित्तए सरिव्वए" सरिसभडमत्तोवगरणे रहेण पडिरह हव्वमागए ॥ १६६ तए ण से पुरिसे वरुण नागनत्तुय एव वदासी - पहण भो वरुणा । नागनत्तुया ! पहण भो वरुणा । नागनत्तुया I भगवई २००. तए ण से वरुणे नागनत्तुए त पुरिस एव वदासी - नो खलु मे कप्पर देवाणु - प्पिया ! पुवि ग्रहयस्स पहणित्तए, तुम चेव ण पुव्वि पहणाहि ॥ २०१ तएण से पुरिसे वरुणेण नागनत्तुएण एव वृत्ते समाणे प्रासुरुते रुट्ठे कुविए चडिक्किए॰ मिसिमिसेमाणे धणु परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुसइ, परामुसित्ता ठाण ठाति, ठिच्चा प्राययकण्णायय उसु करेइ, करेत्ता वरुण नागनत्तुय गाढप्पहारीकरेइ || २०२ तए ण से वरुणे नागनत्तुए तेण पुरिसेण गाढप्पहारीकए समाणे सुरुत्ते ' • रुट्ठे कुविए चडिक्किए° मिसिमिसेमाणे धणु परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुसइ, परामुसित्ता प्राययकण्णायय उसु करेइ, करेत्ता त पुरिस एगाहन्व कूडाहन्च जीविया ववरोवेइ ॥ २०३ तए ण से वरुणे नागनत्तुए तेण पुरिसेण गाढप्पहारीकए समाणे प्रत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारप रक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रह परावत्तेइ, परावत्तेत्ता रहमुसला सगामा पडिनिक्खमति, १. स० पा० – अणे गगणनायग जाव दूय । २ सचिवाल० ( अ, क, व, म), सघिवालग० (ता) । ३ द्रुहेति ( क ), द्रुहति (ता, व ) । ४. स० पा०—रह् जाव सपरिवुडे । ५. ० गर जाव परिक्खित्ते ( अ, क, ता, ब, म, स ) ६. पडिपह० (ता) | ७. सरिसत्तए सरिसव्वए ( क ) 1 ८ स० पा०— -- आसुरुत्ते जाव मिसि । ६ स० पा० – आसुरुते जाव मिसि० ! -
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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