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________________ १०१० ७,८ सताई जहा कण्हलेस्सभवसिद्धीएहि सयं भणियं एवं नीललेस्सभवसिद्धीएहि वि सतं भाणियव्व ॥ ५८. एव काउलेस्सभवसिद्ध एहि वि सतं ।। ५७ भगवई ६-१२ सताई प्रभवसिद्धीय गदियाणं कम्म पगडि-पदं ५६ कइविहा ण भते । श्रभवसिद्धीया एगिंदिया पण्णत्ता ? गोयमा । पचविहा अभवसिद्धीया एगिदिया पण्णत्ता, त जहा - पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एव जहेव भवसिद्धीयसत भणिय, नवर - नव उद्देसगा चरिममचरिमउद्देसगवज्ज, सेस तहेव ॥ ६० एव कण्हले स्सप्रभवसिद्धीयएगिदियसतं पि ॥ ६१ नीललेस्सप्रभवसिद्धीयएगिदिएहि वि सत ॥ ६२. काउलेस्सप्रभवसिद्धीयसत । एव चत्तारि वि अभवसिद्धीयसताणि, नव-नव उद्देगा भवति । एव एयाणि बारस एगिंदियसताणि भवति ॥
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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