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________________ सन्मुख दीपक श्रादि पदार्थों का प्रकाश तुलना करने में समर्थ नहीं होता, उसी प्रकार सिद्धों के सुख के सामने अन्य सुख क्षुद्र प्रतीत होते हैं, तथा जिस प्रकार एक अपूर्व अर्थ के धारण करने से जो आनन्द अनुभव होने लगता है उस प्रकार का आनन्द खाद्य पदार्थों में नहीं देखा जाता / अतः सिद्ध भगवान् अनंत सुखों के धनी कथन किए गए हैं। सिद्ध पद की प्राप्ति के लिये प्रत्येक प्राणी को प्रयत्नशील होना चाहिए, जिस से आत्मा कर्म-कलंक से रहित सिद्ध पद् की प्राप्ति कर सके। अतएव सिद्ध-स्तुति और सिद्ध-भक्ति अवश्यमेव करनी चाहिए। प्रश्न-सिद्ध स्तुति करने से क्या लाभ होता है ? . उत्तर-उनके पवित्र गुणों में अनुराग उत्पन्न होता है। .. प्रश्न-गुणों में अनुराग करने से क्या फल होता है? उत्तर-गुणानुराग करने से निज आत्मा भी उन्हीं गुणों के ग्रहण करने के योग्य हो जाती है, जिस से श्रात्म-कल्याण होता है। प्रश्न-क्या सिद्ध परमात्मा की स्तुति करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं ? उत्तर-सिद्ध परमात्मा वीतराग पद के धारण करने वाले हैं, वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी तथा निज गुण में निमग्न होने से सदा सुख स्वरूप हैं / अतः वह किसी पर प्रसन्न और प्रसन्न कभी नहीं होते। उनकी स्तुति और गुणों में अनुराग करने से अवगुण दूर होकर आत्मीय गुणों का प्रकाश होता है। प्रश्न-स्तुति करने से चित्त-शुद्धि किस प्रकार हो सकती है? - उत्तर-जव उनके गुणों में अनुराग किया जायगा, तव चित्त की प्रसन्नता अवश्यमेव हो जायगी, जिस प्रकार वस्तु का स्वभाव होने से मंत्रादिपद सपदि के विप उतारने में समर्थता रखते हैं तथा जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न इच्छुक की इच्छापूर्ति करने में सहायक होता है. ठीक उसी प्रकार सिद्ध परमात्मा की स्तुति भी आत्मा में शान्ति का संचार करने वाली होती है। प्रश्न-सिद्ध परमात्मा की स्तुति करने से जव श्रात्मा में शान्ति का संचार हो गया तब क्या प्रात्मा सिद्ध परमात्मा को अपना ध्येय बना सकता है ? __उत्तर-सिद्ध परमात्मा जिस आत्मा का ध्येय रूप हो जायगा चह आत्मा भी सिद्ध पद की प्राप्ति के योग्य अवश्यमेव हो जायगा। प्रश्न-सिद्ध भगवान की भक्ति करने से किस गुण की प्राप्ति होती है ? उत्तर-परमात्मा की भक्ति करने से पूर्वसंचित कर्म क्षय हो जाते है, और बहुमान से गुण प्रकट होते है ; फिर कर्म रूपी शत्रु भक्ति द्वारा दग्ध
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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