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________________ ( 25 ) का न होना अर्थात् राजा की ओर से प्रजा को किसी प्रकार से भी भय नहीं होता। 30 परचक्कं न भवइ / पर-राजाओं की ओर से भी कोई उपद्रव नहीं होता। क्योंकि-जिस समय स्वकीय और परकीय राजाओं की ओर से किसी उपद्रव होने की आशंका नहीं होतीः उस समय प्रजा प्रसन्नतापूर्वक अपनी वृद्धि की श्रोरझुक सकती है। इतना ही नहीं किन्तु स्वेच्छानुसार वृद्धि कर सकती है। 31 अइबुहिन भवइ / जिस देश में श्री भगवान् विचरते हैं उस देश में हानिकारक वृष्टि नहीं होती, क्योंकि अतिवृष्टि होने से जन धन और कुलों का भी क्षय हो जाता है। लोक अति कष्ट मे पड़जाते हैं। जनता प्राणों की रक्षा के लिये भी व्याकुल हो उठती है। सो श्रीभगवान् के पुण्योदय से देश में अतिवृष्टि होती ही नहीं। 32 अणावुटि न भवइ / अनावृष्टि भी नहीं होती। क्योंकि जिस प्रकार अतिवृष्टि से जनता को कष्ट सहन करने पड़ते हैं, ठीक उसी प्रकार वर्षा के प्रभाव से भी वे ही कष्ट उपस्थित हो जाते हैं / जिससे जन धन और कुल-क्षय होने की सम्भावना की जा सकती है / अतएव श्रीभगवान् के अतिशय के माहात्म्य से अनावृष्टि भी नहीं होती। अपितु धान्यों के वृद्धि करने वाली प्रमाण पूर्वक ही वृष्टि होती है। 33 दुभिक्खं न भवइ / दुर्भिक्ष नहीं होता। क्योंकि-दुष्काल के पड़ जाने से अनेक प्रकार की विपत्तियों काजनता को सामना करना पड़ता है। जिससे विद्या, बुद्धि तथा बल धर्मादि की गति ये सव मंद पड़जाते हैं; और सदैव काल भूख के सहन करने से प्राणों के रहने का भी संशय रहता है, और यावन्मात्र हानियां तथा उपद्रव उपस्थित होते हैं, उनका मुख्य कारण दुर्मित ही होता है तथा दुर्भिक्ष के कारण धर्म की गति अति मन्द पड़ जाती है। 34 पुचुप्पण्णावियणं उप्पाइया चाही खिप्पमिव उपसमंति / पूर्व-उत्पन्न ज्वरादि रोग वा व्याधियों तथा अनिष्ट सूचक उत्पातों के द्वारा जो प्रजा को अशान्ति के उत्पन्न होने के लक्षण दीखते हैं, वे सव श्री भगवान् के अतिशय के माहात्म्य से उपशम होजाते हैं अर्थात् देश में सर्वथा शान्ति विराजमान रहती है / इसमें कतिपय अतिशय जन्म से ही होते हैं, और कतिपय दीक्षा के पश्चात् केवल ज्ञान होने पर प्रगट होते हैं, तथा कतिपय अतिशय भव-प्रत्यय और कतिपय देवकृत माने जाते हैं, परंच सव
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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