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________________ ( 307 ) णाम और शुक्लवर्ण परिणाम, अर्थात् यावन्मात्र पुद्गल हैं वे सर्व कृष्ण, नील, पीत, रक्त और श्वेत वर्ण में ही परिणत होरहे हैं। क्योंकि ऐसा कोई भी पुद्गल नहीं है जो वर्ण से रहित हो / अतः सर्व पुद्गल पंचवर्णी हैं। वर्ण युक्त होने के कारण पुद्गल गंध धर्म वाला भी है। अतएव सूत्रकार गंध विषय कहते हैं गंध परिणामणं भंते कतिविधे प. ? गोयमा! दुविहे प. तंजहा सुम्भिगंध परिणामे दुम्भिगंध परिणामे य / भावार्थ हे भगवन् ! गंध परिणाम कितने प्रकार से वर्णन किया गया है ? हे गौतम ! दो प्रकार से, जैसेकि-सुगंध परिणाम और दुर्गन्ध परिणाम क्योंकि यावन्मात्र पुद्गल है वह सब दोनों प्रकार के गंधों में परिणत होरहा है तथा गंधों में परिणत होना यह पुद्गल का स्वभाव ही है। अव सुत्रकार रस परिणाम विपय कहते है / जैसकि रसपरिणामेणं भंते कतिविहे प. 1 गोयमा ! पंच विहे पण्णत्ते तंजहा तित्तरसपरिणामे जाच महुररस परिणामे / भावार्थ-हे भगवन् ! रसपरिणाम कितने प्रकार से वर्णन किया गया है ? हे गौतम ! रस परिणाम पांच प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसेकि-तिक रस परिणाम, कटुक रस परिणाम, कसायला रस परिणाम, खट्टा रस परिणाम और मधुर रस परिणाम अर्थात् यावन्मात्र पुद्गल है वह सव पांचों ही रसों में परिणत होरहा है। यद्यपि छठा लोगों ने लवणरस भी कल्पन किया हुआ है किंतु वह रस संयोगजन्य है। इस लिये शास्त्रका ने पांचों ही रसों का विधान किया है। पुद्गल का यह स्वभाव ही है कि वह रसों में परिणत होता रहता है क्योंकि-पुद्गल द्रव्य मूर्तिमान् है / सो जो द्रव्य मूर्तिमान होता है वह वर्ण गंध रस और स्पर्श वाला होता है / अतएव सूत्रकार इसके अनन्तर स्पर्श विषय कहते हैं तथा रस धर्म अजीव का प्रतिपादन किया गया है नतु जीव का क्योंकि जीव तो एक अरूपी पदार्थ है।। अब सूत्रकार स्पर्शविषय कहते हैं: फासपरिणामेणं भंते कतिविधे प. 1 गोयमा ! अहविधे प, तंजहा कक्खड़फासपरिणामे जाच लुक्खफासपरिणामे य // भावार्थ- हे भगवन् ! स्पर्श परिणाम कितने प्रकार से वर्णन किया गया है ? हे गौतम! स्पर्श परिणाम आठ प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। जैसेकिकर्कशस्पर्शपरिणाम, मृदुस्पर्शपरिणाम, गुरुस्पर्शपरिणाम, लघुस्पर्शपरिणाम,
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
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Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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