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________________ ( 305 ) त्वस्य रूक्षत्वस्य च विषममात्रा भवति तदा बंधः स्कन्धानामुपजायते / इयमत्र भावना-समगुणस्निग्धस्य परमारवादे. समगुण स्निग्धेन परमाण्वादिना सह सम्बन्धो न भवति तथा समगुणरूतस्यापि परमारवादेः समगुणरूक्षेण परमाएवादिना सह संबंधो न भवति, किन्तु यदि स्निग्धः स्निग्धैन रुक्षोरुक्षेण सह विषमगुणों भवति तदा विषममात्रत्वात् भवति तेषां परस्परं सम्बंध- / विषममात्रया बंधो भवर्त त्युक्तम् ततो विषममात्रानिरूपणार्थमाह- 'निद्धस्स णिद्धरण दुहियाणेत्यादि' यदि स्निग्धस्य परमाएवादेः स्निग्धगुणनैव सह परमारवादिना बंधी भवितुमर्हति तदा नियमात् दयाधिकाधिकगुणेनैव परमाएवादिनेति भावः / रूक्षगुणस्यापि परमारवादेः रूक्षगुणेन परमारवादिना सह यदि वंधो भवति तदा तस्यापि तेन व्यायधिकगुणेनैव, नान्यथा / यदा पुन स्निग्धरूक्षयोर्वधस्तदा कथमिति चेदत आह-निद्धस्स लुक्खेणेत्यादि' निग्धस्य रूक्षेण सह बंधमुपैति उपपद्यत जघन्यवयों विषम समो वा किमुक्तं भवति-एकगुणस्निग्धं एक गुणरूवं च मुक्त्वा शेषस्य द्विगुणास्निग्धादेर्द्विगुणरूक्षादिना सर्वेण बंधो भवतीति उक्तो बंधनपरिणामः। . __इसका अर्थ पूर्व लिखा जा चुका है। सर्वोक्त कथन का सारांश इतना ही है कि-जव स्कंधों का परस्पर बंधन होता है तव उन स्कंधों के स्निग्धादि गुण वैमात्रिक होते है / तब ही उनका बंधन हो सकता है।। अव बंधन परिणाम के अनन्तर गतिपरिणाम विषय कहते हैं: गतिपरिणामेणं भंते कतिविहे प. 1 गोयमा दुबिहे पएणते तंजहाफुसमाणगतिपरिणामे अफुसमाणगतिपरिणामे अहवादीहगतिपरिणामे रहस्सगतिपरिणामेय / भावार्थ हे भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! गति परिणाम दो प्रकार से वर्णन किया गया है जैसेकिस्पर्शमान गति परिणाम और अस्पर्शमानगतिपरिणाम तथा दीर्घगतिपरिणाम वा हुस्वगतिपरिणाम / इस कथन का सारांश इतना ही है कि-जव पुद्गल.गति परिणाम में परिणत होता है तब वह दो प्रकार से गति करता है। एक तो स्पर्शमानगति परिणाम | जैसे जो-पुद्गल गति में परिणत हुआ तव वह अपने क्षेत्र में आने वाले श्राकाश प्रदेशों को तथा खक्षेत्र से पृथक् अाकाशप्रदेशों को स्पर्श करके ही गति करता है। जिस प्रकार एक शर्कर (कांकरी) जल पर किसी द्वारा प्रक्षिप्त की हुई जल को स्पर्श कर वा विना स्पर्श कर गति करता है ठीक उसी प्रकार पुद्गल भी आकाश प्रदेश अपने से जो पृथक् हैं उनको भी स्पर्श करके गति करता है। दूसरे भेद में जिस प्रकार पक्षी भूमि को न स्पर्श करता हुआ गति करता है उसी प्रकार पुद्गल भी अपने क्षेत्री प्रदेशों को छोड़ कर अन्य प्रदेशों को न स्पर्श करता हुआ गति करता है / सो इन्हीं को स्पर्शमान और अस्पर्शमान गतिपरिणाम कहते हैं। एवं दर्धिगति
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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