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________________ (275 ) 3 पवनधारणा-दूसरी धारणा का अभ्यास होने के पीछे यह सोचे कि मेरे चारों ओर पवन मंडल घूमकर राख को उड़ा रहा है / उस मंडल में सव ओर स्वाय स्वाय लिखा है * / ' 4 जलधारणा-तीसरी धारणा का अभ्यास होने पर फिर यह सोचे कि मेरे ऊपर काले मेघ आगये और खूब पानी बरसने लगा / यह पानी लगे हुए कर्म मैल को धोकर आत्मा को स्वच्छ कर रहा है। पपपप जल मंडल पर सव ओर लिखा है ti 5 तत्वरूपवती धारणा-चौथी का अभ्यास हो जावे तव अपने को सर्व कर्म व शरीर रहित शुद्ध सिद्ध समान अमूर्विक स्फटिकवत् निर्मल आकार -देखता रहे: यह पिंडस्थ आत्मा का ध्यान है। / पदस्थध्यापन पदस्थध्यान भी एक भिन्न मार्ग है / साधक इच्छानुसार इस का भी अभ्यास कर सकता है / इसमें भिन्न पदार्थों की विराजमान कर ध्यान करना चाहिए / जैसे हृदय स्थान में आठ पांखड़ी का सुफेद कमल सोचकर उसके अाठ पत्तोंपर क्रम से आठ पद पीले लिखे। (1) णमो अरहंताणं (2) णमो सिद्धा णं (3) णमो आइरीयाणं (4) णमो उवज्झाया (5) णमो लोएसवसाहूणं (6) सम्यग्दर्शनाय नमः 7 सम्यग्ज्ञानाय नमः 8 सम्यक्चरित्राय नमः और' एक एक पद पर रुकता हुआ उस का अर्थ विचारता रहे / अथवा अपने हृदय पर या मस्तक पर या दोनों भोहों के मध्य में या पाभि में है या ऊँ को चमकता सूर्य सम देखे व अरहंत सिद्ध का स्वरूप विचारे इत्यादि। रूपस्थध्यान ध्याता अपने चित्त में यह सोचे कि मैं समवशरण में साक्षात् तीर्थकर भगवान् को अन्तरिक्ष ध्यानमय परम वीतराग छत्र चामरादि आठ प्रातिहार्य सहित देख रहा हूं। 12 सभाएँ हैं जिनमें देव, देवी, मनुष्य, पशु, 'मुनि आदि वैठे हैं, भगवान् का उपदेश होरहा है। खाय - स्वाय ध्यानाकार | स्वाय / अग्नि पपपपपप पप-पय पप पपपपपप प प प प प प - -- स्वाय
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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