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________________ ( 265 ) अतिप्पणयाए अपिहणयाए अपरियावणयाए एवं खलु गोयमा! जीवाणं साया वेयणिज्जा कम्मा कजंति // __ भगवती सूत्र शतक 8 उद्देश है। भावार्थ-(प्रश्न) हे भगवन् ! सातावेदनीय कार्मणशरीरप्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? (उत्तर) हे गौतम ! प्राणियों की, भूतों की, जीवों की, सत्वों की अनुकंपा करने से, बहुत से प्राणी यावत् सत्वों को दुःख न देने से, दैन्य भाव उत्पन्न न करने से, शोक उत्पन्न न करने से, अश्रुपात न कराने से, यट्यादि के न ताड़ने से, शरीर को परिताप न देने से / इस प्रकार हे गौतम ! जीव साता वेदनीय कर्म को वांधते है। इस सूत्र का यह मन्तव्य है कि सातावेदनीय कर्म प्राणी मात्र को साता देने से बांधा जाता है जिस का परिणाम जीव सुखरूप अनुभव करते हैं। प्रश्न-असाता वेदनीय कर्म किस कारण से वांधा जाता है? उत्तर-जीवों को असाता उत्पन्न करने से क्योकि-जिस प्रकार जीवों को दुःखों से पीड़ित किया जाता है, ठीक उसी प्रकार असाता (दुःख) वेदनीय कर्म कारस अनुभव करने में आता है। तथा च पाठः अस्साया बेयणिजपुच्छा, गोयमा ! परदुक्खणयाए परसोयणयाए परजूरणयाए परतिप्पणयाए परपिहणयाए परपरियावणयाए वहणं पाणाणं जाच सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जाव परियावणयाए एवं खलु गोयमा ! जीवा अस्साया वेयणिज्जा जावप्पयोगबंधे // भगवती सू० शतक - उद्देश 6 / भावार्थ-जिस प्रकार जीवों को सुख देने से साता वेदनीय कर्म बांधा जाता है ठीक उसी प्रकार दुःख देने से, सोच कराने से, शरीर के अपचय (पीड़ा ) करने से, अश्रुपात कराने से, दंडादि द्वारा ताड़ने से, शरीर को परिताप न देने से असाता वेदनीय कर्म बांधा जाता है / जिस का परिणाम जीव को दुःख रूप भोगना पड़ता है.।। प्रश्न--मोहनीय कर्म किस प्रकार से बांधा जाता है और मोहनीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्म के करने से आत्मा धर्ममार्ग से पराङ्मुख रहे और सदैव काल पौगलिक सुखा की अभिलापा करता रहे उसे ही मोहनीय कर्म कहते हैं / जिस प्रकार मदिरापान करने वाला जीव तत्त्व विचार से पतित हो जाता है ठीक उसी प्रकार मोहनीय कर्मवाला जीव प्रायः धर्म क्रियाओं से
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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