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________________ * जैनतत्त्वकलिकाविकास-पूर्वाई * नमोत्थुणं समणस्स भगवो महावीरस्स / से केण्डेणं भंते ? एवं बुञ्चइ देवाधिदेवा देवाधिदेवा ! गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंतो उप्पचनाएदंसणधरा तीयपडुप्पन्न मणागया जाणया अरहा जिणा केवली सव्वएणू सव्वदरिसी से तेणठेणं जाव देवाधिदेवा 2 // भगवती सत्र-शतक १२-उद्देश / अंधयारे तमे घोरे चिठ्ठन्ति पाणिणो बहू / को कारस्सइ उज्जोयं सव्वलोयम्मि पाणिणं / / उग्गो विमलो भारणू सव्वलोय पभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोयम्मि पाणिणं / / भारण्य इ इ के घुत्ते केसीगोयममव्यवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमव्यवी।। उग्गयो खीणसंसारो सम्वन्नू जिणभक्खरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सन्च लोयम्मि पाणिणं / / उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 23 भावार्थ-श्रीगौतम स्वामी श्री भगवान् महावीर स्वामी से विनय पूर्वक प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् ! देवाधिदेव किस कारण से कहे जाते है इस प्रश्न के उत्तर में श्रीभगवान् प्रतिपादन करते है कि हे गौतम ! जो यह अर्हन्त भगवन्त उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धरने वाले है अतीत काल और वर्तमान तथा भविण्यत् काल के जानने वाले हैं अर्हन्त रागद्वेप के जीतने वाले संर्पूण ज्ञान के धरने वाले जो सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है इसी कारण से उन्हें देवाधिदेव कहा जाता है / तथा केशी कुमार श्रमण श्री गौतम गणधरसे प्रश्न पूछते है कि-हे गौतम ! इस भयंकर घोर अंधकार में बहुत से प्राणी ठहर रहे हैं सो कौन सर्वलोक में उक्त प्राणियों को उद्योत करेगा? __इस के प्रतिवचन में गौतम स्वामी कहने लगे कि हे भगवन् ! उदय हुया निर्मल सूर्य सर्वलोक मे प्रकाश करने वाला सो सर्वलोक में उक्त प्रकार के प्राणियों को उद्योत करेगा। इस प्रहेलिका रूप प्रश्न को स्पष्ट करते हुए फिर श्रीकशी कुमार श्रमण
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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