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________________ क्योंकि उनके संकल्प उसको शिक्षित करने के ही होते हैं नतु मारने के। एवं कोई वैद्य या डाक्टर किसी रोगी के अंगोपांग छेदन करता हो तो उसके व्रत में दोप नहीं है। क्योंकि उसके भाव उस रोगी को रोग से विमुक्त करने के हैं नतु मारने के / ऐसे अनेक दृष्टान्त विद्यमान हैं, जिनका सारांश भावों पर अवलम्बित है / सो गृहस्थ ने जो जानकर, देखकर वा संकल्प कर निरपराधी जीव के मारने का परित्याग किया हुआ है, वह अपने नियम को विवेक तथा सावधानता पूर्वक सुख से पालन कर सकता है। हां यह वात अवश्य माननी पड़ेगी कि उक्त नियम वाले गृहस्थ को प्रत्येक कार्य करते समय विवेक और यत्न रखना होगा। _इस नियम को शुद्ध पालन करने के लिये श्रीभगवान् ने इस व्रत के पांच अतिचार प्रतिपादन किए हैं / जैसेकि तयाणन्तरं चणं थूलगस्स पाणाइवाय वेरमणस्स समणोवासए णं पञ्च अझ्यारा पेयाला जाणियन्वा न समायरियन्या तंजहा-बंधे बहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवोछए // 1 // _(उपासकदशाङ्गसूत्र अ० 1 // ) भावार्थ-जब श्रमणोपासक सम्यक्त्व रत्न के पांच मुख्य अतिचारों को सम्यक्तया दूर करदेतव उसको चाहिए कि स्थूल प्राणातिपात वेरमण जो प्रथम अनुव्रत धारण किया हुआ है, उसके भी पांच अतिचार समझे किन्तु उन पर आचरण न करे / क्योकि-आचरण करने से उक्त नियम भंग होजाता है। वे अतिचार निम्न प्रकार वर्णन किये गये हैं। जैसे __बन्धअतिचार-पशु वा मनुप्यादि को निर्दयता से वांधने को वन्धअतिचारकहते हैं / उस का आचरण करने से पशु श्रादि को परम दुःख पूर्वक समय व्यतीत करना पड़ता है और वान्धने वाले का प्रथम व्रत भंगहोजाताहै। अतः यदि किसी कारण से किसी जीव को वांधनाभीपड़ जाय तो उसको कठिन चंधनों से न वांधना चाहिये / जैसे कि-व्यवहार पक्ष में गो, वृषभ, अश्व, गज आदि पशु बांधने पड़ते हैं, परन्तु बंधन करते समय कठिन बंधन का अवश्यमेव ध्यान रखना चाहिये / ताकि ऐसा न हो इस अनाथ पशु आदि के प्राण ही 1 इह् खलु आणंदाइ समणे भगवं महावीरे आणंदं समणोवासर्ग एवं वयासी-एवं खलु आणंदा : समगोवासए णं अभिगयर्जावाजांवेण जावप्राइकमाणज्जणं सम्मत्तस्स पंच अइयारा पैयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा- संवा कड्खा विइगिच्छा परपासंडपसमा परपासंडसथवे // यह पाठ उपासकदशागमूत्र के प्रथम अध्ययन में आता है / इसके आगे व्रतो के अतिचारों का वर्णन कियागया है। इस सूत्र का अर्थ प्राग्वन् ही है //
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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