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________________ ( 180 ) उनका नाम न लेना चाहिए तथा यदि कोई गुरु वर्ग की निंदा करता हो तो उस स्थान पर न ठहरना चाहिए और नाँही निंदा सुननी चाहिए / इस प्रकार माता पिता का पूजन करने वाला आत्मा विशेष धर्म में सुख पूर्वक प्रविष्ट हो सकता है। कारण कि-उसके अन्तःकरण में पहले से ही भक्तिभाव बैठा हुआ होता है। अपितु उस को योग्य है कि वह अपने माता पिता कोधार्मिक कार्यों में नियुक्त करे, जिस से वे परलोक में भी सुख प्राप्त कर सकें / यद्यपि सुपुत्र ने अपने विनयी भावों से उनको ऐहलौकिक सुखों में निमग्न कर दिया है तथापि पारलौकिक सुख केवल धर्म के आधार पर ही निर्भर है / इसलिये सुपुत्र को योग्य है कि-वह उनको धर्मपथ की ओर लेजाए। साथ ही यथायोग्य भरण पोषण करता हुआ इस प्रकार के वचन का प्रयोग न करे जिस से किसी प्राणी को उद्वेग की प्राप्ति हो जावे। कारण कि-वचनप्रहार से किसी अन्य आत्मा को पीड़ित करना, यह कोई बुद्धिमत्ता नहीं है / अतएव धर्म, अर्थ और काम इन को योग्यता पूर्वक पालन करता हुआ भावी अनर्थों से पौष्पवर्ग की रक्षा का अन्वेषण करे। यदि पौष्पवर्ग निंदा का पात्र बन जाय तो फिर अपने गौरव की रक्षा करे / क्योंकि-स्वकीय गारव की रक्षा करने से फिर सब की भली प्रकार रक्षा हो सकती है / अपनी शारीरिक रक्षा करता हुआ ही धर्म के योग्य हो सकता है जैसे कि तथा-"सात्म्यत. कालभोजनमिति" . इस सूत्र का आशय यह है कि नीरोगता ही प्रत्येक कार्य की साधक है / जब शरीर रोगग्रस्त हो जाता है, तव उस प्राणी के लिए अमृत भी विषरूप होता है। अतएव नीरोगता के रखने के लिये भोजन की ओर अत्यन्त ध्यान रखना चाहिए / प्रकृति के प्रतिकूल और विना भूख वा अजीर्ण अवस्था में भोजन करना रोगोत्पत्ति का मुख्य कारण होता है, इस लिये भोजन करते समय यह भली भांति ज्ञान होना चाहिए कि मेरी प्रकृति अनुकूल कौन 2 से पदार्थ है / कहीं ऐसे न होजाए कि स्वल्प भोजन के लोभ में फंसकर चिरकाल पर्यन्त रोगों का मुंह देखना पड़े और पीछे उनके उपशम करने के लिए बहुत से योग्य और अयोग्य प्रतिकार करने पड़ें। भोजन के समय भोज्य पदार्थों के गुण और अपनी प्रकृति का भली भांति ज्ञान होना चाहिए / ' बहुत से अनभिज्ञ आत्माएँ अयोग्य. ममत्व भाव के कारण रोगी को कह देते हैं कि तुम कुछ थोड़ा भोजन खालो, ताकि शक्ति बनीरहे इत्यादि वाक्यों से उसे दुःखित करते हुए बलात्कार भोजन करवा ही देते हैं। अब विचार करना चाहिए कि-जव उनके विचारानुकूल उस रोगी को शक्ति मिलेगी तो क्या उसके रोग को शक्ति नहीं मिलेगी ? जब रोग भी शक्ति
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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