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________________ EXCECEIODOICEKACCESAXCISKCEIXCEXX NEEKSEEDSEXKEDAKORDKAEEKKORAEXExaxmummxxxAIKXE XXCXXCDXVORIXXCCIRRORIRIKAKROACXCESS @ मथुरा दास जी मोगानिवासी की सम्मत्यनुसार श्राप श्रीको साधु वस्त्र की डोली बना। कर मोगा मंडी में लेगए। डाक्टर साहब ने बड़े प्रेम से श्राप की प्रांखों का प्रतिकार किया है श्राप श्री जी की दोनों आंखों से मोतिया निकाला गया। आपकी दृष्टि ठीक होगई, फिर आप श्री जी को उसी प्रकार साधु वस्त्र की डोली में बैठा कर लुध्याना मे ही ले श्राए / श्राप श्री जी के लुध्याना मे विराजने से नगरनिवासी प्रायः, प्रत्येक जन को प्रसन्नता थी। जिस प्रकार जैन संघ श्राप की भक्ति में दत्तचित्त था उसी प्रकार जैनेतर लोग भी आपकी भक्ति करके अपने जविन को सफल मानते थे। आपका प्रेमभाव प्रत्येक जन के साथ था / इसी कारण प्रत्येक अन्यमतावलम्बी भी आपको पूज्य दृष्टि से देखता था और दर्शन करके अपने आप को कृतकृत्य समझता था। यह आपके सत्योपदेश का ही फल है जो लुध्याना मे 'जैनकन्या पाठशाला' नाम की संस्था भली प्रकार से चलरही है / अनुमान सवा दोसौ 225 कन्याएं शिक्षा पारही हैं। इस पाठशाला में सांसारिक शिक्षा के अतिरिक्र कन्याओं को धार्मिक शिक्षा भी भली प्रकार से दी जारही है। पञ्जाव प्रान्त में, स्थानकवासी जैनसमाज में यह एक ही पाठशाला है। इस का सुप्रबन्ध और नियमपूर्वक संचालन इस के कर्मचारी भली प्रकार से कर रहे है / आपके वचन में एक ऐसी अलौकिक शक्ति थी, जो प्रत्येक जन को हितशिक्षा प्रदान करती थी। आप के मधुर वाक्य स्वल्पाक्षर और गंभीरार्थ होते थे / सदैवकाल श्राप आत्मविचार तथा मौनवृत्ति से समय विशेष व्यतीत करते थे। आपकी प्रत्येक वार्ता शिक्षा प्रद थी। कालगति बड़ी विचित्र है। यह किसी का ध्यान नहीं करती कि-यह धर्मात्मा है या पापिष्ट / यही गति स्वामी जी के साथ हुई / 1988 ज्येष्ट कृष्ण 25. शुक्रवार के दिन स्वामी जी ने पाक्षिक व्रत किया / वृद्धावस्था के कारण श्राप को खेद तो रहा ही करता था, किन्तु पारने के दिन शनि-, वार को श्राप को वमन और विरेचन लग गए, जिस से आप अत्यन्त निर्बल होगए, तब सायंकाल श्राप ने अन्य साधुओं से कहा कि मुझे अनशन करादो, उस समय साधुनों ने आप को सागारी अनशन करा दिया। उस समय आप ने आलोचना द्वारा भली। प्रकार अात्मविशुद्धि की और सब जीवों के प्रति अन्तःकरण से समापन किया। रविवार के दिन आपने औपध को छोड़ कर फिर सागारी अनशन कर दिया / रविवार को 12 बजे के पश्चात् श्राप की दशा चिंताजनक होगई / सायंकाल फिर आपने चार श्राहार का त्याग करादिया। सोमवार प्रातःकाल जब डाक्टर और वैद्य ने श्राप को देखा तो निश्चय हुआ कि-श्रव दशा विशेप चिंताजनक होगई है, तब श्रापको निरागार यावजीव पर्यन्त अनशन कराया गया / आप शान्ति से लेटे हुए थे, और श्राप के पास साधुवर्ग वा श्रावकवर्ग बैठा हुआ था जो आपको सूत्रपाठ सुना रहे थे / जब DIXITORBAXIRDIXCHDEXCIPEXXXCCIDXXHDSAXKHAOXXCCXXCORXXTARIYAR PRKorea
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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