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________________ ( 135 ) लोभे य लोभे य हवंति दसएए 3 पुचि-पच्छा संथवं विज्जा मंते य चूएण जोगे य उप्पायणा इ दोसा सोलसमे मूलकम्मेय 4 अर्थ-१ धाई (धात्री) धाय का काम करके आहारादि लेवे तो दोप / 2 दुई (दूती) दूतपना जैसे गृहस्थी का सन्देशा पहुंचा कर आहारादि लेवे तो दोष / 3 निमित्ते (निमित्त) भूत, भविष्य, वर्तमान काल के लाभालाभ, सुखदुःख, जीवन मरणादि चतलाकर आहारादि लेवे तो दोष / 4 श्राजीव(श्राजीविका) अपना जाति कुल आदि प्रकाश कर आहारादि लेवे तो दोष / 5 वणीमगे (वनीपकः) रांक भिखारी की तरह दीनपना से मांगकर श्राहारादि लेवे तो दोप। ६तिगिच्छे (चिकित्सा) वैद्यक-चिकित्सा करके आहारादि लेवे तो दोष / 7 कोहे (क्रोध) क्रोध करके आहारादि लेवे तो दोष 8 माणे (मान) अहंकार करके लेवे तो दोष / 6 माया (कपट) करके लेवे तो दोष / 10 लोभे (लोभ) लोभ करके अधिक आहारादि लेवे अथवा लोभ वतला कर लेवे तो दोप / 19 पुब्धि पच्छा संथव (पूर्वपश्चात्संस्तव) पहले या पीछे दातार की प्रशंसा करके आहारादि लेवे तो दोष / 12 विज्जा (विद्या) जिसकी अधिष्ठाता देवी हो अथवा जो साधना से सिद्ध की गई हो उसको विद्या कहते हैं ऐसी विद्या के प्रयोग से आहारादि लेवेतो दोष। 13 मंते (मंत्र ) जिसका अधिष्ठाता देव हो अथवा विना साधना के अक्षर विन्यास मात्र हो उसको मंत्र कहते हैं ऐसे मंत्र का प्रयोग करके आहारादि लेवे तो दोष / 16 चुराण (चूर्ण) एक वस्तु के साथ दूसरी वस्तु मिलाने से अनेक प्रकार की सिद्धि हो ऐसा अदृष्ट अंजनादि के प्रयोग से आहारादि लेवे तो दोष / 15 जोगे (योग) पाद (पग) लेपनादि सिद्धि बतलाकर आहारादि लेवे तथा वशीकरण मंत्रादि सिखलाकर वा स्त्रीपुरुष का संयोग मिलाकर आहारादि लेवे तो दोष / 16 मूल कम्मे (मूल कर्म)-गर्भपातादि औषध बतलाकर आहारादि लेवे तो दोष अर्थात् किसी ने साधु के पास अपने गुप्त दोष का कारण बतला दिया फिर यह भी बतला दिया कि-अव गर्भ भी स्थिर रह गया है तव साधु उसको गर्भपातादि की औपध वतलावे तो उस साधु को महत् दोष लगता है। इस प्रकार सोलह दोष उत्पाद' के वर्णन किये गए हैं। श्रव 10 दोष एषणा के कहे जाते हैं जो साधु और गृहस्थ दोनों के कारण लगते हैं। संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहियसाहरियदाय गुम्मासे अपरिणय लित्त छड्डिय एसणा दोसादसहवंति 5 / . अर्थ-संकिय (शंकित ) गृहस्थी को तथा साधु को शंका पड़ जाने
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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