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________________ ( 127 ) और काय तथा करना, कराना और अनुमोदना अर्थात् तीनों योग और तीनों करणों से परित्याग करना चाहिए। इस व्रत की निम्नलिखित पांच भावनाएँ रक्षक है जैसे कि __ अणुवौतिभासणया 1 कोहविवेगे 2 लोभविवेगे 3 भयविवेगे 4 हासविवेगे 5 1 अनुविचिन्त्यभाषणसमिति-विना विचार किये कदापि भाषण न करना चाहिए / शीघ्रता और चपलतासे भाषण करना भी वर्जनीय है। कटु शब्दों का प्रयोग कदापि न करना चाहिए / तभी सत्य वचन की रक्षा हो सकती है। 2 क्रोधविवेक-क्रोध नहीं करना चाहिए क्योंकि-क्रोधी मनुष्य असत्य, पिशुनता, कठिन वाक्य कलह, वैर इत्यादि अवगुणोंको उत्पन्न कर लेता है और सत्य, शील तथा विनयादि सद्गुणों का नाश कर लेता है। क्रोधरूपी अग्नि को उपशान्त करने के लिये क्षमारूपी महामेघ की वर्षा होनी चाहिए। 3 लोभविवेक-प्राणी लोभके वशीभूत होकर भी सत्य का नाश कर बैठता है। यावन्मात्र संसार में मनोऽनुकूल पदार्थ है उनकी प्राप्ति की जब उत्कट इच्छा बढ़ जाती है तव सत्य की रक्षा कठिन होजाती है। अतएव सन्तोप द्वारा सत्य की रक्षा के लिए लोम का परिहार कर देना चाहिए / भयविवेक-सत्यवादी को किसीका भी भय नहीं होना चाहिए क्योंकिभययुक्त आत्मा सत्य की रक्षा करने में असमर्थ होजाता है। कहते हैं कि-भययुक्त श्रात्मा को ही भूत प्रेत छला करते हैं। भययुक्त आत्मा सत्य कर्मों से पराड्मुख होजाता है अतएव सत्यवादी धैर्य का अवलम्बन करता हुआ सत्यव्रत की रक्षा कर सकता है / भय के वशीभूत होकर कई वार झूठ बोला जाता है / इस लिये भय से विमुक्त होने की भावना उत्पन्न करनी चाहिए। 6 हास्यविवेक- सत्यवादी को किसी का उपहास भी न करना चाहिए कारण कि-हास्य रस का पूर्व भाग तो वड़ा प्रिय होता है परन्तु उत्तर भाग परम भयानक और नाना प्रकार के क्लेषों के उत्पन्न करनेवाला होजाता है। यावन्मात्र क्लेश हैं उन के उत्पन्न करने वाला हास्यरस ही है। अतएव सत्यव्रत की रक्षा के लिये हास्यरस का आसेवन कदापि न करना चाहिए / इस विधि से द्वितीय महावत की पालना करनी चाहिए। 3 अदिचादानविरमण-तदनन्तर चौर्यकर्म से निवृत्तिरूप तृतीय महाव्रत का यथोक्लरीति से पालन करना चाहिए / जितने सूक्ष्म वा स्थूल पदार्थ है चाहे वह अल्प है वा वहुत, जीव है वा अजीव, जिनके वे आश्रित होरहे हैं
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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