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________________ EXCEXEKX XXGHORAKCEKADXCOXXCOKESxxi GORKETAH ( 2 ) लगे / आपकी बुद्धि बड़ी ही निपुण थी / आप चांदी और सुवर्णादि पदार्थों की तीक्ष्ण बुद्धि से परीक्षा किया करते थे / आपकी रुचि धर्मक्रिया में भी विशेष थी, अतएव श्राप धर्मक्रियाओं मे विशेष भाग लिया करते थे / सांसारिक पदार्थों से श्राप की स्वभाव से हो अरुचि थी / संसार के सुखों को आप बंधन समझते और सदैव काल धार्मिक क्रियाओं के आसेवन करने की इच्छा विशेष रखते थे। वैराग्य भाव उत्पन्न होने का वृत्तान्त / एकदा कारणवशात् श्राप मुकाम नारोवाल की ओर गये / जव आप लौटकर पीछे को आरहे थे मार्ग में एक नदी आई जो कि-डेक के नाम से प्रसिद्ध थी / वह नदी ऐसी है जहां नौका तो नही चलती परंच केवट बहा रहता था। वह पंथियो को अपने सहारे से हाथ पकड़ कर पार कर देता था | आपने नदी पर पाकर उस केवट को कहा हमें पार पहुंचा दो | उस समय अन्य भी दो पुरुष पार जाने वाले श्रापके साथ थे। तब उस केवट ने श्राप तीनों के हाथ पकड़ कर पार पहुंचाना स्वीकार कर लिया / किंतु जब श्राप उसका हाथ पकड़ कर नदी के मध्य में पहुंचे तब अकस्मात् पीछे से नदी में बाढ़ अर्थात् बहुत सा जल आगया इस लिए पार होना अत्यन्त दुष्कर हो गया, तब केवट ने सोचा, यदि मैं इनके पास रहा तो ये मुझे भी अपने साथ दुःख का भागी बनायेंगे, श्रत वह खेवट श्राप सब प से अपने आपको छुड़ा कर आगे निकल गया, पश्चात् श्राप तीनों जल में बहने लगे। जीवित रहने की आशा टूट गई / उस समय आप के यह प्रणाम हुए कि यदि मैं इस कष्ट से बच जाऊं तो गृहस्थाश्नम को त्याग कर मुनिवृत्ति को धारण कर लूंगा, तब दैवयोग से वा पुण्य के प्रभाव से अथवा श्रायुष्कर्म के दीर्घ होने के कारण जल के प्रवाह ने ही आपको नदी के तीर ( किनारे ) पर पहुंचा दिया, किन्तु जो आप के दो और साथी थे वे दोनों कुछ दूर जाकर जल में डूब कर मर गये / वहां से शीघ्र ही आप घर पर पाए तथा समस्त वृत्तान्त सुनाया / आपका कष्ट दूर होने का समाचार सुन कर सारा परिवार अतीव हर्षित हुआ। पुनः आपने अपनी प्रतिज्ञा पालन करने के वास्ते दीक्षा की आज्ञा मांगी, किन्तु यह सुनते ही सबको चिंता और शोक ने व्याकुल कर दिया / आपको संसारी पदार्थों का बहुत सा लोभ दिखाया गया, * परन्तु क्या कमल एक बार पंक से निकल कर फिर उस में लिप्त हो सकता है ? कदापि नहीं, ऐसे ही जब आपका मन संसार से उदासीन होगया भला फिर वह इस में कैसे फंसे ? जब आपको श्राज्ञा न मिली तब आपने सांसारिक कार्यों को छोड़ कर केवल धर्ममय जीवन बिताने के लिये जैन उपाश्रय मे ही निवास कर लिया / उस समय श्री दूलोराय जी वा श्री 1008 पूज्य सोहनलाल जी महाराज भी / SaxexxcmoxxxarXERIEOXERODRIODKKomxxc DODXCX EXCEDKACKxnxxARKICHIKACKXCXXCSKIN NORomx xanaxxxxxxxxxxa XXXX
SR No.010871
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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