SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૦ देने पर यह ज्ञान विश्वरूप से भासमान होने लगजाता है । *** इसी कारण से श्रुत निश्रित मतिज्ञान के मुख्यतया चार भेद प्रतिपादन किये गए हैं जैसे कि - अवग्रह १ ईहा अवाय ३ और धारणा ४ । ई f १ अवग्रह - सामान्य बोध का नाम अवग्रह है, जिसके मुक्य दो भेद हैं जैसे कि व्यञ्जनावमह और अर्थावग्रह। जब श्रुतेन्द्रिय के साथ अव्यक्त रूप से शब्दादि के परमाणुओं का ear होता है उसीका नाम व्यञ्जनावमह है परन्तु जब उस शब्द के द्वारा कुछ अव्यक्त रूप से अर्थ की प्रतीति होने लगे तब अर्थावह होता है । जैसे -कल्पना करो कोई पुम्प शयन किये हुए है तब उस पुरुष को किसी पुरुष ने प्रतिबोध ( जगाया ) किया तर वह अव्यत रूप को सुनकर देवल 'हुकार' ही करता है सो उसी समय, का नाम अयम है क्योंकि अवग्रह के समय में केवल सामान्य अवबोध ही रहता है सो वह भी अव्यक्त रूप से 1. T t [ ri I ईहा - जय अवग्रह के अनन्तर ईहा का समय आता है है तय अवम से विशिष्ट अवरोध ईहा का होजाता # t जैसे कि "उसी शब्द पर वह फिर विचार करता है कि यह अमुक शब्द है क्योंकि प्रथम तो केवल शब्द को सुनकर उसने केवल " हुंकार” ही किया था। जब उम शब्द पर युद्ध " ईहा " मतिमान का प्रभाव पडा तय उसने wh
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy