________________ तप ब्राह्मचर्य प्रत ही है। इमरिये इम प्रा के धारण करने यारे देवां पे मी पूज्य माने जाते हैं। जैसे कि -" देव दाणय गवा जम्प रावस्स किरा पभयारी नमसति दुक्करजे करति ते " अर्थात् प्रह्मचारी को देव, दााय, देव गधर्व देव या और राक्षस तया किमर देव इत्यादि मप ही नमस्कार करते हैं कारण पिइम प्रत पा धारण करना शूर वीर आत्माओं का ही फर्तव्य है। इमलिये हे मित्र ' देश धर्म, या समानोग्ननि रे लिये इस व्रत को अवश्य-मेय धारण करना चाहिये / तया निर्वाण प्राप्ति के लिये इस प्रहमचर्य प्रत को धारण पर मुस दी प्राप्ति करनी चाहिये। जिनदास-मसे में आपरा उपकार माता हू जो आपने मुझ इम प्रत का पवित्र उपदेश पिया है और मैं आपये ममक्ष श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी की साक्षी से आयु पार्थत इस महामत को धारण करता हू और में यह प्रण भी परता कि अब में धर्म या ममानोन्नति के लिये अपना जीवन यापज्जीवन पर्यंत समर्पण यमगा। मैं अपने जीवा