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________________ गृहस्थ को अपनी स्त्री सिवाय धेश्या सग या परनी सग तथा घुचेष्ठा कर्म सर्वथा त्याग देना चाहिये। फिर शुद्ध भोजन और शुद्ध भाचार तथा शुद्ध व्यवहार उसे धारण करना चाहिये। जिनदास.-मित्रवर्य / शुद्ध आचार से आपका क्या मतव्य है? जिनदत्त --ससे जिस आचरण से अपने मन में विकार उप्तन हो जाये तथा जिस आचरण का प्रभाव आत्मा पर अच्छा न पडे उम प्रकार के कदाचारों से मदेव यचना चाहिये। जिनदास -सखे दृष्टात देकर आप मुझे समझाइये / जिनदत्तः-शुद्ध आचार उसी का नाम है जिम आचार से अपने मन में कोई भी विकार उप्तन न होवे। जैसे कि जर कोई पुरुप मास साने वाले की या मदपान करने वाले की तथा श्यादि की संगती करेगा तर उसके मन में अवश्यमेव पुत्सित विचार उप्तन्न होने लग जायगें। अतएर आचार शुद्धि रखने वाला आत्मा जिन स्थानों की प्रतीति न होये तथा जिन 2
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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