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________________ जन्य गध, काम-जन्य रम और काम-जन्य स्पर्श तथा काम-जन्य स्वाया इनमे मूर्छित कदापि न होवे, कारण कि जो अनभिज्ञ आत्माएँ पचेंद्रियों के अर्थों विषय मूर्छित हो रहे हैं वे अकाल में ही मृत्यु प्राप्त कर लेते हैं। जैसे कि ---मृग, पतग, सर्प या भ्रमर, मत्स्य और हाथी, उक्त सन जीव यथा क्रम से पाचों इद्रियों में से एक २ के वश होते ही अकाल मै मृत्यु प्राप्त कर लेते हैं। फिर जो पाचों इदियों के वश में हो जाता है. उस मनुष्य की यात ही क्या कहना है ? इस लिये ब्रम्हचारी को उक्त पाची विपयों से बचना चाहिये । तथा जिस प्रकार मेघ का शब्द सुनकर मयूर नाच फरने लग जाता है ठीक उसी प्रकार कामजन्य शन्दों के सुनने से प्रम्हचारी का मन भी शुद्ध रहना कठिन होजाता है। अतण्व कामजन्य शन्दों को न सुनना चाहिये। जिनदास -मरे में इसे भी ठीक समझ गया। अब मुझे ग्रह्मचर्य के नववे नियम का ध कराइये। जिनदत्त ---मित्ररर्य । अब आप इस व्रत के नर नयम को ध्यान पूर्वक, नो साया मोम्ग्व
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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