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________________ ૨૪ जिनदास तसे' जो बाल-बचारी है उनके लिये तो यह नियम कार्य साधक नहीं मिरा हुआ क्यों कि उसे तो किसी बात का पता ही नहीं है । - जिनदत्तः - मित्रवर्य । जो याल मझवारी हाँ ये पूर्वोत विषयों को सुनकर या किसी पुस्तक से पढकर फिर उस विषय की स्मृति न करें क्योंकि फिर उनको भी पूर्वोष दक्षेपा की प्राप्ति होने की सभावना पी जा सकेगी। निमसे प्रम्हचर्य प्रत में नाना प्रकार की earऍ उत्पन्न होने लगगी । अतएव विषयों की स्मृति न करनी चाहिये । 1 जिनदास-ससे इन रिमा को तो में ठीक समझ गया हू किंतु अब आप मुझे आठये नियम पा विषय यहिये | जिनदत्त ययस्य । प्रेम पूर्वक इस नियम को श्र कीजिये । "नो सद्वाणुवाई नो रूपाणुवाई नो गधाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुबाई' ॥८॥ महाचारी पुरुष शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श तथा स्वाप इनमें मूर्छित न होवे | अथात् काम-नन्य शब्द, फाम-जन्य रूप, काम -
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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