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________________ H Se होते हैं जैसे कि तो उन समयों का वियोग दूम गणगय से व्यर्थ व्यय । क्योंकि उसके पास इतना पर्या धन नहीं होता जिससे वे विवाद -मस्कार के समान मृत || संस्कार के लिये ज्ञानि भोजन कर मर्के । अतएव गण के नेताओं को योग्य है कि इस प्रकार की कुप्रथाओं या विरोध करें । तथा जो शाति जा उस मोजा में अपने मोचन साने के लिये उन कियाओं के परने में अपनी महाभूति प्र करते है यदि उन लोगों को पम्पनियों वे तमाशा ( नृत्य ) की ! तरह पीस या श्रीस मुद्राओं देनी पड़े तब उनको महज में ही निश्चित होता कि मृतक के सरकार महोत्सव की मिठाई का कितना मूल्य पडा है | अतएष इतना महंगा पदार्थ हम नहीं या । शोक से पहना पढता है कि अनेक धार्मिक सस्था बिना सहानुभूति के मृतक शय्या पर गया किये जारही हैं और कई घूमते हुए दीप की तरह डाय डोल हो रही है। जाति के अनाथ याक या पालिकाए भूस के मारे विधर्मी कर रही है और अनेक विधवा विना सहायता के कदाचार में प्रविष्ठ हो रही हैं। श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पवित्र सिद्धात बिना प्रचार के अनेक आक्षेपों का स्थान पनरहा है तथा जैन
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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