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________________ देखने की अभिला भी उसकी प्रतितो अवश्य होगाई इम का पे उत्तर में पृहा जाता है कि उसने नाम प्रचार के मन म मल्प उत्पन्न हो जाया करते है TE यहत में मान्य प्राय: अशुभ होते है और साथ है? पमाचार दी और पग पढ़ने गगनाता है इतना ही नहीं , यदुत भी अनभित आत्माए फिर मार्ग में गगन यग्न पाई पानाती है। इसरिये अय विचार पर देगााय मो र ! नृत्य में दबने में जो धन पा व्यय किया था पावित काम में आया ? अत निममें सामारिक या पारमार्थिक को ९१ मी मिद्धि न हो, पेयल इद्रियों के ही तृप्नि परने या मार्ग है। उमी पो ध्यध्यय पहा जाता। पास्ते ऐसी क्रियाओं में पचा चाहिये। मृतर मम्बार के पश्चात् भोजन ( मोसर)।निस प्रकार, त्यादि इंद्रियों की रिश के कारण व्यर्थ व्यय में वर्णिन, दिये गये हैं ठीक उसी प्रकार पहुत से लोग भूतक सस्कार, या उसके पश्चात मृत महोत्सव के रूप में जीमनवारादि । किया परते हैं। ये प्रिया भी अयोग्य प्र शामविहीत होने से इयर्थ व्यय करने में मूल कारण मन. जाती हैं। जैसे कि जप फिसी की मृत्यु होती है सब असके वियोग का दुमा प्राय सम्बन्धीजनों को होता ही है। हा, इतना विशेष अवश्य है कि जिस प्रकार की मृत्यु उसी प्रकार का
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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