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________________ । ७३७ पञ्चम अध्याय ॥ करे परन्तु प्रश्नकर्ता ( पूछने वाले ) का चन्द्र खर चलता हो तो कह देना चाहिये कि-- पुत्र उत्पन्न होगा परन्तु वह जीवेगा नहीं । __५-यदि दोनों का ( अपना तथा पूछने वाले का ) सूर्य खर चलता हो तो कह देना चाहिये कि-पुत्र होगा तथा वह चिरञ्जीवी होगा। ६-यदि अपना चन्द्र स्वर चलता हो तथा पूछने वाले का सूर्य स्वर चलता हो तो कह देना चाहिये कि-पुत्री होगी परन्तु वह जीवेगी नहीं । __७-यदि दोनों का ( अपना और पूछने वाले का ) चन्द्र स्वर चलता हो तो कह देना चाहिये कि-पुत्री होगी तथा वह दीर्घायु होगी। ८-यदि सूर्य खर में पृथिवी तत्त्व में तथा उसी दिन के लिये किसी का गर्भसम्बन्धी प्रन हो तो कह देना चाहिये कि-पुत्र होगा तथा वह रूपवान, राज्यवान् और सुखी होगा। ९-यदि सूर्य स्वर में जल तत्त्व चलता हो और उस में कोई गर्भसम्बन्धी प्रश्न करे तो कह देना चाहिये कि-पुत्र होगा तथा वह सुखी, धनवान् और छः रसो का भोगी होगा। १०-यदि गर्भसम्बन्धी प्रश्न करते समय चन्द्र खर मे उक्त दोनों तत्त्व (पृथिवी तत्त्व और जल तत्त्व ) चलते हो तो कह देना चाहिये कि-पुत्री होगी तथा वह ऊपर लिखे अनुसार लक्षणों वाली होगी। . ११-यदि गर्भसम्बन्धी प्रश्न करते समय उक्त खर में अग्नि तत्त्व चलता हो तो कह देना चाहिये कि-गर्भ गिर जावेगा तथा यदि सन्तति भी होगी तो वह जीवेगी नहीं। १२-यदि गर्भसम्बन्धी प्रश्न करते समय उक्त स्वर में वायु तत्त्व चलता हो तो कहा देना चाहिये कि या तो छोड़ ( पिण्डाकृति ) बंधेगी वा गर्भ गल जावेगा । १३-यदि गर्भसम्बन्धी प्रश्न करते समय सूर्य खर में आकाश तत्त्व चलता हो तो नपुसक की तथा चन्द्र स्वर में आकाश तत्त्व चलता हो तो बाँझ लडकी की उत्पत्ति कह देनी चाहिये। १४-यदि कोई सुखमना स्वर में गर्भ का प्रश्न करे तो कह देना चाहिये कि-दो लडकियाँ होंगी। १५-यदि कोई दोनों खरों के चलने के समय में गर्मविषयक प्रश्न करे तथा उस समय यदि चन्द्र खर तेज़ चलता हो तो कह देना चाहिये कि-दो कन्यायें होंगी तथा यदि सूर्य खर तेज चलता हो तो कह देना चाहिये कि-दो पुत्र होंगे। गृहस्थों के लिये आवश्यक विज्ञप्ति । खरोदय ज्ञान की जो २ वाते गृहस्थो के लिये उपयोगी थी उन का हम ने ऊपर कथन कर दिया है, इन सब बातों को अभ्यस्त ( अभ्यास में ) रखने से गृहस्थों को
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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