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________________ ६३६ जैनसम्पदामशिक्षा | सार बर्ताव किया, इस लिये राजा भौर पचा उस पर बहुत नुक्ष हुए, कुछ समय के भाव हामीचाद के पुत्र उत्पन हुआ और उस ने दसोहन का उत्सव बड़ी धूमधाम से क्रिया सभा पुत्र का नाम नक्षत्र के अनुसार भ्रूणा रक्सा, अब वह पाँच वर्ष का हो ग सब दीवान ने उस को विद्या का पढ़ाना प्रारंभ किया, बुद्धि के वीक्ष्ण होने से वा ने विद्या तथा फछाकुञ्चलता में अच्छी निपुणता प्राप्त की, जब कणा की अवस्था भीस वर्ष की हुई वन दीवान हामी चाह ने उस का विवाह मड़ी धूमधाम से किया, एक वि मसग है कि-रात्रि के समय रूणा और उस की भी पर्कंग पर सो रहे थे कि इतने में वैदवस सोते हुए ही कणा को साँप ने काट खाया, इस भाव की सवर कणा के पिता को मात काळ हुई, तब उस ने झाड़ा झपटा और योषधि आदि बहुत से उपाय करवाये परन्तु कुछ भी फायदा नहीं हुआ, विप के वेग से छणा बेहोश हो गया तथा इस समा चार को पाकर नगर में चारों ओर हाहाकार मच गया, सब उपायों के निष्फळ होने से दीवान मी निराश हो गया अर्थात् उस ने पुत्र के जीवन की आशा छोड़ दी तथा सू की स्त्री सती होने को तैयार हो गई, उसी दिन भर्मात् विक्रमसंवत् १९९२ ( एक हजार एक सौ बानवे) के अक्षयतृतीया के दिन युगमपान जैनाचार्य श्री जिनवधसूरि बी महाराय विहार करते हुए वहाँ पधारे, उन का आगमन सुन कर बीवान हामीसाम माचार्य महाराम के पास गया और नमन वन्दन आदि करके अपने पुत्र का सब पृच्छन्त कह सुनाया तथा यह भी कहा कि-"यदि मेरा जीवनाधार कुछदीपक प्यारा पुत्र जीवित हो माये तो मैं छात्रों रुपयों की बनाहिरात आप को भेंट करूँगा और भाप जो कुछ आशा प्रदान करेंगे बद्दी में स्वीकार करूँगा" उस के इस बधन को सुन कर आचार्य महा राम ने कहा कि - "हम त्यागी है, इस लिये व्रन्म लेकर हम क्या करेंगे, हाँ यदि तुम अपने कुटुम्ब के सहित दयामूख भ्रम का महण करो तो तुम्हारा पुत्र भीमित हो सकता बगहाभीसा ने इस बात को स्वीकार कर लिया तब आचार्य महाराज ने चारों रफ पड़वे डलवाकर जैसे रात्रि के समय खुणा और उस की स्त्री पढेंग पर सोते उसी प्रकार सुरूबा दिया और ऐसी कि फिराई कि नही सर्प आकर उपस्थित हो गया, हुए बे सन व्यापार्य महाराज मे उस सर्प से कहा कि- "इस का सम्पूर्ण निव स्लीप से" मह सुनते ही सर्प पग पर घर गया और विप का चूसना प्रारम्भ कर दिया, इस प्रकार कुछ देर में सम्पूर्ण निप को खींच कर वह सर्प चला गया और पूजा सचेत हो गया, नगर में रंग होने और भानन्य पाजन बमने लगे तथा दीवान हामीचाद ने उसी समय बहुत कुछ दान पुण्य कर कुटुम्बसहित दयामूळ धर्म का महण किया, भाचार्य महाराज मे उस का माहाजन वंश भार वणिया गोत्र स्थापित किया || राग सूचना-प्रिय वाचकवृन्द ! पहिले जिस चुके हैं कि दादा साहब पुरामधान सेना
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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