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________________ १२० चैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ प्रथम साम्य पंचार सेस सीसौद सिंगाला। रणथम्मा राठोऊपंस घंषाल पपाला॥ वैया भाटी सौनगए फाषा धनगौड़ कही। जादम माला जिंद लाज मरजादू लडीज ॥ परदरा पाट औ पेखरा लेणों पटा जला सरा। एक दिवस इसा माहाजन या सर पा मिसासरा ॥२॥ उस समय भीरमपम सरि महाराज ने उपर कहे हुए रामपूठों की शासामों का माहामन पर और भठारह गोत्र स्थापित किये में मो कि निमछिलिप्त ८-१-Jहा गोत्र । २-बाफमा गोत्र । -फोट गोत्र । ५-पगहरा गोत्र । ५-मोरक्ष गोम। ६-कूलहट गोत्र । -निरहट गोत्र । ८-भीभीमाल गोत्र । ९-मेष्ठिगोत्र । १०-मुर्मिती गोत्र । ११-माईचांग गोत्र । १२-मरि ( मटेनरा) गोत्र । १३-भाद्रगोत्र । १४पीचर गोत्र । १५--कुमट गोन। १६-हिंदू गोन। १७-कनोम गोत्र । १८-समु भेष्ठि गोत्र || इस प्रकार ओसिया नगरी में माहामन पन मौर उफ १८ गोत्रों का स्मापन कर थी हि बी महाराम विहार कर गये और इस के पचात् दश वर्ष के पीछे पुन म्मसी बात नामक नगर में सरि जी महाराष विहार करते हुए पपारे और उन्हों ने राज पूतों के वश इनार परों को प्रतिपोप देकर उन का माजजन बंश भौर मुपड़ादि पहुत से गोत्र स्मापित किये। प्रिय मापक इन्द ! इस प्रकार उपर जिसे अनुसार सब से मथम माहावन की स्थापना अनाचार्य श्री राममरि जी महाराब मे की, उसके पीछे विक्रम संपत् सोमा सौ तक पहुत से अनाचार्या मे राजपूत, महेश्वरी श्म भोर असम जासिमालों को प्रति मोप देकर ( अपात् उपर पहुए माहागन पक्ष मा विस्तार कर) उनके माहाजन पश भोर भनेक गो का स्भासन दिया है जिस का मामाणिक इतिराम अत्यन्त मोर परने पर चा छ हम को प्राप्त हुभा हे उस फोहम सब मानने सिये लिमते है। माहाजन महिमा का पिच महायम सरोव व बागार मार माहान गरी दवा मारमा मार। पामगर्तवदेन विपि पार मापन प र प्रभात मसार गोल नही मनोपर पर माराम Hdस । मानव समाराम dad ca वि सम्बर 1
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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