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________________ १९१ मैनसम्मवामशिक्षा । इस रोग में जो यह प्रमा देसी बासी है कि- शीठ और पोरी मादिवाळे रोगी को परदे में रखते हैं तथा दूसरे भादमियों को उस के पास नहीं जाने देते हैं, सो श प्रया तो प्राय उत्तम ही है परन्तु इस के मसरी सस्व को न समझ पर छोग प्रम (पाम) के मार्ग में घने को है, देखो। रोगी को परदे में रखने तमा उसके पास दूसरे वनों ने न जाने देने का कारण तो बस यही है कि—पर रोग चेपी है, परन्तु प्रम में पड़े हुए बन उस का तात्पर्य यह समझते हैं कि रोगी के पास दूसरे बनो जाने से शीतग देवी कुन्द हो जायेगी इत्यादि, यह फेमन उन की मूर्सता मोर मश नवा ही है। रोगी के सोने के सान में सच्छता (सफाई ) रखनी चाहिये, वहाँ साफ इना को भाने देना चाहिये', भगरमती मादि मनी चाहिये मा धूप भादिके द्वारा उस सान को मुगन्धित रखना चाहिये कि जिस से उस सान की हया न बिगड़ने पाने । रोगी के पच्छे होने के माद उस के कपड़े और बिछौने आदि बना देने चाहिये अपना घुलना कर साफ होने के बाद उन में गन्भक न धुंषा देना चाहिये। स्खुराक-शीतला रोग से युक्त पधेको तथा गरे भावमी को सान पान में दूध, भारत, परिया, रोटी, प्रा डा र बनाई हुई रानड़ी, मग तश मरहर (तूर) की वार, पाल, मीठी मारगी तथा बजीर भादि मीठे मोर ठो पदार्थ प्रायः देने चाहिम, परन्तु यदि रोगी के कफन मोर हो गया हो तो मीठे पदार्ग तथा फर नहीं देने का हिये, उसे कोई भी गर्म वस्तु साने को नहीं देनी चाहिये । रोग की पहिणे अवसा में तथा दूसरी मिति में फेमळ दूप भाव ही देना भाई तीसरी सिति में केगर ( मसा) दूप ही अच्छा है, पीने के लिये ठंा पानी भरना बर्फ फा पानी देना पाहिये । रोग मिटने के पीछे रोगी मशक (माता) हो गया हो तो जप ठक पत्र 1-स पिप में परिव ७ प प पुरे गित से पाठकों ने विधिवत पन ऐन्ध है मासर में पान मेयो मूर्यता और ममता ५-अर्पद पार से भाव रसायनाट गरमी पारिपे । -पौरपलियाने से परे रोस पो ने (उत्तम से प्यने) सम्भावना रही । -शिरोम्पो धीरने में उपरोपके परमाणु प्रति पते परि पनपनयन पर अपप साफ और से पिमा पुस म साना गारो परमाणु सरे मनुप्पो परीर में प्रशिदोरम प्रेमपत्र पर ५-41 मरे पर भार भी दिसते शिससे सम्पमा उत्पागने मामा राख
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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