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________________ १२८ अनसम्प्रदायशिक्षा । कहे हुए रसों को विधान् वैयों के द्वारा मनवा कर सदा अपने परों में रखसे तमा भवसर ( मौका ) पड़ने पर अपने कुटुम्ब, सगे, सम्मन्मी और गरीब लोगों को देते थे, मिससे रोगियों को तत्पर छाभ पहुँचता या भौर इस भगकर रोग से बच जाते थे, परन्त पर्समान में यह बात बहुत ही कम देखने में भाती है, कहिये ऐसी दशा में इस रोग में फंस कर मेपारे गरीबों की क्या न्यबसा हो सकती है। इस पर भी पार्ममा विषम यह है कि उक रस मेपों के पास भी बने हुए शायद ही कही मिस सकते क्यों कि उनके बनाने में द्रम्प की तबा गुरुगमता की आवश्यकता, भौर न ऐसे दयावान् वैप ही वेसे नाते हैं कि ऐसी कीमती दवा गरीबों को मुफ्त में वे देखें। पूर्व समय में उपर मिले अनुसार यहाँ के भनाम सेठ और साकार परमात्र का विचार कर वैयों के द्वारा रसोंको मनमा पर रखते थे भौर समय माने पर अपने छ म्बियों सगे समपियों मोर गरीबों को देते थे, परन्तु भव तो परमाचे प्रवचार, अदा तमा दया के न होने से वह समय नहीं है, किन्तु भव सो यहाँ के नाम मग मविपा देवी के प्रसाद से पाह शादी गांवसारणी और मौसर भादि पर्व कामों में हमारों रुपये मपनी वारीफ़ के लिये उगा देते हैं मोर पूसरे अपिया देवी के उपासक चन मी उन्हीं कामों में न्यम करने से मग उन की तारीफ करते हैं समय बहुत ही सुश होते हैं, परन्तु रिपा देवी के उपासक मिशन् मम ऐसे कामों में व्यय करने की कभी तारीफ नहीं र सकते हैं, क्यों कि ऐसे मर्म कार्यों में हमारों रुपयोन मवर वेना शिष्ठसम्मत (विद्वानों की सम्मति के भनुल) नहीं है। पाठक गप पर केस से मस्येव के पनामों भौर सेठ साइफारों की उदारता का परिचय मच्के प्रकारते पा गये होंगे, भब करिये ऐसी दशा में इस देश के कस्माल मान समय में ये (मगरा रेनमियापी बनाम और साइपर भार ऐसे मासरोकिन के विषय में समा गई पाखा सन्तु मम्त पाप में मा पम्ताप करपा परवान चरित्र और माप ऐसे मिम्पो चिम देशार पाना उत्पम रोता पेभेप पम पम ऐसे मदोन्मत्त होकन प्रेमपने पत्तम भी गणि पुषि , परिवहन येपो परिसवारी दुर्गों के साथ सहसास परवा लिया और मनपा पुमा संगति में पड़ी भर भी भपकी महती परि पोष पुस्प इनके पास भाकर म्हारे इसी बान्तरण गरी वीर मा पुल मकर गाये और इम र माता मी पानी में भपने पमबनिता सो व्या मप्र सियों देखना रम की चो करमा बारपा पीपरमन्ना मैप भारि मारोंग सेरम करम मरों निम्नाममा पा जमम्म पम प्रेम में मर करना पीना स्वरिन प्राममा प्रवे। किमा पानी सपना र पामर मावि ऐसे है क्योंकि मी लिनेक विहान् पस्मा पर रिचरण पुम्मर पोनिमा और समार यदि गुणे पुच है, पर अधिप में समे सामिप्रसन हम भभी कर ले।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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