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________________ २९० बेनसम्प्रदायशिक्षा॥ १३-पक्षाघात-इस रोग में माधे शरीर की नसों का शोपण हो कर गति की रुकावट हो चासी है। १४-फोटुशीर्पफ-इस रोग में गोड़ों में पानी सून फो पा पर फठिन सूर्बन को पैदा करती है। १५-मन्यास्तम्भ-इस रोग में गर्दन की नसों में पायु कफ को पकर फर गर्दन को बफा देती है। १६-पर-इस रोग में फमर तथा जापों में पानी घुस र धोनों पैरों को निकम्मा पर देसी है। १७-फलायखा-स रोग में उस समय घरीर में कम्पन होता है प्रभा पैर टेने पर जाते हैं। १८-तुनी-इस रोग में पकाधम में पिनग पैदा होफर गुना भोर उपस्थ (पेशाप की इन्द्रिय) में माती है। १९-प्रतिसृनी-इस रोग में तूनी की पीड़ा मीपे को उतर फर पीछे नामि की सरफ पाती है। ___२०-म्पा-इस रोग में पंगु (पांग) के समान सप रक्षण होते हैं, परन्तु विक्षे पसा फेवल यही है कि-यर रोग फेवा एक पैर में होता है, इस ठिय इस रोगबाले को ऊँगड़ा करते हैं। ___ २१-पादठप-इस रोग में पैर में पर सनसनाहट होती है सभा पैर शून्य जैसा दो पाता है। २२-पभ्रसी-स रोग में फटि (मर) के नीचे का भाग (प) भौर पेर मादि) जफर जाता है। २३-विश्वाची-इस रोग में होगी सभा अंगुम्मिा मकर नाती है मौर हाम से काम नहीं होता है। २५-अपपाहुफ-इस रोग में हापों की नाही बा र बाप नूसते (दर्द फरसे) रहते हैं। २५-अपतानफस रोग में पादी एवम में मार पि फो सम्म (रुकी हुई) फरती है, शान भीर सभा (पेसनसा) फा नाक्ष परती है और कण्ठ से एक विक्षन (मनीय) सरह की भाषाम मिफाती है, मप यह वायु एवम से भष्म हटती है वन रोगी को सधा माप्त होती है (होश भावा है), इस रोग में दिखीरिया (उन्माव) समान निह पार २ हासे तथा मिट जाते हैं। -पर सूरन मनाम के सिरप रामा सीमित इस पीपक (पाम पिर) । - राई याममर प्रक्ली भी प्रव॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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