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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ३९१ २६ - व्रणायाम -- इस रोग में चोट अथवा जखम से उत्पन्न हुए व्रण ( घाव ) में वादी दर्द करती है । २७ - व्यथा - इस रोग में पैरों में तथा घुटनों में चलते समय दर्द होता है । २८- अपतन्त्रक- इस रोग में पैरो में तथा शिर में दर्द होता है, मोह होता है, गिर पडता है, शरीर धनुष कमान की तरह बाका हो जाता है, दृष्टि स्तब्ध होती है तथा कबूतर की तरह गले में शब्द होता है । २९- अंगभेद – इस रोग में सब शरीर टूटा करता है । ३० - अंगशोष- इस रोग में वादी सब शरीर के खून को सुखा डालती है तथा शरीर को भी सुखा देती है । ३१ - मिनमिनाना --- इस रोग में मुँह से निकलनेवाला शब्द नाक से निकलता है, इसे गूंगापन कहते है | २२ - कल्लता - इस रोग में हिचक २ कर तथा रुक २ कर थोडा २ बोला जाता है तथा बोलने में उबकाई खाता है । ३३ - अष्टीला - इस रोग में नाभि के नीचे पत्थर के समान गाठ होती है । ३४- प्रत्यष्ठीला - इस रोग में नाभि के ऊपर पेट में गाठ तिरछी होकर रहती है । ३५ - वामनत्व - इस रोग में गर्भ में प्राप्त होकर जब वादी गर्भविकार को करती है तब बालक वामन होता है । ३६- कुब्जत्व-इस रोग में पीठ और छाती में वायु भर कर कूबड़ निकाल देती है । ३७- अंगपीड़ - इस रोग में सब शरीर में दर्द होता है । ३८ - अंगशूल -- इस रोग में सब शरीर में चसके चलते हैं । ३९ - संकोच - इस रोग में वादी नसो को सकुचित कर शरीर को अकड देती है । ४० - स्तम्भ - इस रोग में वादी से सब शरीर ग्रस्त हो जाता है । ४१ - रूक्षपन - इस रोग में वादी के कोप से शरीर रूखा और निस्तेज हो जाता' 1 ४२ - अंगभंग - इस रोग में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वादी से शरीर टूट जायगा । ४३ - अंगविभ्रम-इस रोग में शरीर का कोई भाग लकड़ी के समान जड हो जाता है। ४४ - मूकत्व - इस रोग में बोलने की नाडी में वादी के भर जाने से जवान बन्द हो जाती है । ४५ - विग्रह - इस रोग में आँतो में वायु भर कर दस्त और पेशाब को रोक देती है ।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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