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________________ ३६८ चैनसम्प्रदामशिक्षा || भाषों के योग से मिले हुए पानी से ( मिस में पारा सोमल और सीसा आदि वि पैले पदार्थ गलकर मिले रहते है उस जलसे ) भी रोगों की उत्पति होती है ।। १ - खुराक - शुद्ध, मच्छी, प्रकृति के सुराक के खाने से शरीर का पोपण होता है फपी, रूखी, बहुत ठंडी, बहुत गर्म, भारी के स्वाने से बहुत से रोग उत्पन होते हैं, इन मनुकूछ और ठीक तौर से सिजाई हुई तथा अशुद्ध, सड़ी हुई, बासी, बिगड़ी हुई मात्रा से अधिक तथा मात्रा से न्यून खुराफ सब का वर्णन संक्षेप से इस मकार है १ सड़ी हुई खुराफ से कृमि, हैजा, वमन, कुछ ( को ), पिस तथा व भावि रोग होते हैं। 7 दर्शनात् दर वित्तं स्पर्शनात् हरते पसम् । मैथुनाव हरते बीर्ये घेत्या प्रत्यक्षराक्षसी ॥ १ ॥ बेश्या समसूत्र पूछ में किय उसकी आँ भवात् दर्शन से चित को छूने से बल को और मैथुन से बीम को हर सेठी है अत राक्षसी ही है ० १ ० बयपि ही जानते है कि इस राम्री श्मा ने हजारों घरों को दिया है तिस पर भी को बाप और बेटे को साथ में बैठ कर भी कुछ नहीं सूमता है, कमी कि चकनाचूर हो जाते है, प्रविष्य तथा जवानी को छोकर बदनामी का तोड़ पले में पहनते हैं, देखो ! हजारों धोम इश्क के बचे में चूर होकर अपना भर बार बेचकर हो २ बानों के किये मारे १ फिरसे है, बहुत से नादान खोम बम कमा २ कर इन की भेट चबाते है और उनके मातापिता दोनों किये मारे १ फिरते है, न पूजेो इस कार्य से उन की को २ कुक्षा होती है वह सब अपनी करनी का ही फिहै, क्योंकि वे ही प्रत्येक उत्सव अर्थात् बाकसम्म नामकरण सुण्ड समाई और विवाह मैं तमाम के सिवान जन्मात्रमी राषम्मम्म रामा हो दिवाळी राइरा और सती भी पर कुछ कर अपने भी जवानों को उन राम्रवियों की रसभरी बाबाम तथा मधुरी म कवि से मे बहुषा रडीबाज हो जाते है तथा उन को भातक और सुजाक मार बीमारियां मेर केटी है, जिनकी आग में में सुब मुमते रहते है तथा जन की परसादी अपनी और को भी बेकर निरास छोडा है, बहुतसे मूर्ख जन रण्डीयों के नाज मरे तथा मना शुप्पर भारिप ऐसे मोहित हो जाते हैं घर की विवाहिता ोिं के पास तक नहीं भाते है तथा जग (वादिया लियों) पर नाम प्रकार के दोष रखकर मुॅह से बोक्ना मी अच्छा नहीं समझते है, में बेचारी कारण रातदिन रोटी यहती है, मह मी अनुभव किया गया है या खियां महफिस का मा बसी है मन पर इस का ऐसा बुरा असर पाता है जिससे घर के भर उमड़ जाते हैं बजाक जब वे बेटी-म्पूर्ण पिक के खोप उपर की ओर बने हुए उस के नाम और नरों को सह रहे कि जब मूलने का इरादा करती है तो एक आदमी पीकदान कर हजर होता है, कार पद पाने की हुई से भी निहायत भाजु तथा भवन के साथ उपस्थित किन्नाया है इस शिवाय वह युद्ध भीचे से ऊपरक सोने और चांदी के आयाम्प त अब गुम्बदन और कमरम्यान यानि महसूसों के बाज को एक एक दिन मे चार १ ब
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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