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________________ तृतीयो वर्गः ] भापाटीकासहितम् [ ८३ धर्म- जागरण करते हुए इस प्रकार के आध्यात्मिक विचार उत्पन्न हुए कि मैं इम उत्कृष्ट तप से कृश हो गया हूं अतः प्रभात काल ही स्कन्दक के समान श्री भगवान् से पूछकर स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर चढ़कर अनशन व्रत धारण कर लूं । उसने तदनुसार ही श्री भगवान् की आज्ञा ली और विपुलगिरि पर अनशन व्रत धारण कर लिया । इस प्रकार एक मास तक इस अनशन व्रत को पूर्ण कर और नौ मास तक दीक्षा का पालन कर वह काल के समय काल करके चन्द्र से ऊंचे यावत् नव-ग्रैवेयक विमानों के प्रस्तटों को उल्लङ्घन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव-रूप से उत्पन्न हो गया । तब स्थविर विपुलगिरि से नीचे उतर ये और भगवान् से कहने लगे कि हे भगवन् ! ये उस धन्य अनगार के वस्त्रपात्र आदि उपकरण हैं । तब भगवान् गौतम ने श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्रश्न किया कि हे भगवन् ! धन्य अनगार समाधि से काल कर कहां उत्पन्न हुआ है । भगवान् ने इसके उत्तर में कहा कि हे गौतम ! धन्य अनगार समाधि-युक्त मृत्यु प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ । गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया कि हे भगवन् ! धन्य देव की वहां कितने काल की स्थिति है ? भगवान् ने उत्तर दिया कि तेतीस सागरोपम धन्य देव की वहां स्थिति है । गौतम ने प्रश्न किया कि देवलोक से च्युत होकर वह कहां जायगा और कहां पर उत्पन्न होगा ? भगवान् ने कहा कि वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो निर्वाण - पद प्राप्त कर सब दुःखों से विमुक्त हो जायगा । PARA श्री सुधर्मा स्वामी जी कहते हैं कि हे जम्बू ! इस प्रकार मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् ने तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है | पांचवां सूत्र समाप्त | प्रथमाध्ययन समाप्त हुआ । टीका - इस सूत्र में धन्य अनगार की अन्तिम समाधि का वर्णन किया गया है और उसके लिए सूत्रकार ने धन्य अनगार की स्कन्दक संन्यासी से उपमा दी है । इस प्रकार तप करते हुए धन्य अनगार को एक समय मध्य रात्रि में जागरण करते हुए विचार उत्पन्न हुआ कि मुझ मे अभी तक उठने की शक्ति विद्यमान है और मेरे धर्माचार्य श्री भगवान् महावीर स्वामी भी अभी तक विद्यमान है तो फिर ऐसी सुविधा होने पर भी मैं अनशन व्रत धारण क्यों न कर लूं । इस विचार
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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