SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना अनादि संसार-चक्र में परिभ्रमण करती हुई आत्मा, अपने पुण्योदय से, सभी इच्छानुकूल पदार्थों की प्राप्ति कर सकती है । सांसारिक सुखों को उपलब्ध कराने वाले पदार्थ भी क्षण-भंगुर होते हैं, अतः शास्त्रकारों ने उन पदार्थों से प्राप्त होने वाले सुखों को भी क्षण-भंगुर बताया है । क्योंकि जब पुद्गल द्रव्य ही क्षणभंगुर हैं, तो उनसे उपलब्ध होने वाले सुख चिरस्थायी कैसे हो सकते हैं ! यही कारण है कि सांसारिक आत्माएँ, सांसारिक सुखों के मिल जाने पर भी, आत्मिक सुखों से वंचित होकर दुखी हो रही हैं। यदि आप संसार के विशाल चित्र-पट पर विवेक-पूर्ण एवं विशाल दृष्टि डाले, तो आपको विदित होजाएगा कि सांसारिक आत्माएँ किस प्रकार दुःखों से उत्पीड़ित होकर भयंकर आर्तनाद कर रही हैं। ___ मिथ्यात्वोदय से इन आत्माओं में पुनः पुनः मिथ्या-संकल्प उदय होते रहते हैं। वे वास्तविक सुखों के स्थान पर क्षणभंगुर सुखों की खोज में ही समय व्यतीत करती रहती हैं। फिर भी उन्हे शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसी लिए, वर्तमान युग मे, जड़वाद की ओर विशेष प्रवृत्ति होने के कारण चारों ओर से अशांति की ध्वनि सुनाई पड़ रही है । धर्म से पराङ्मुख हो जाने से मानसिक तथा शारीरिक दशा भी शोचनीय होती जारही है । बहुत सी आत्माएँ दुःखदायी घटनाओं के घट जाने के कारण अपने अमूल्य जीवन को व्यर्थ ही नष्ट कर रही हैं । संपूर्ण सामग्री के मिल जाने पर भी उनके चित्त को शांति नहीं। जब हम इस विषय पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हैं, तो हम आगमों
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy