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________________ अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् - - - ७२' आइल्लाणं आदि के, पहले के २० तपस्वियों में आउक्खएणं आयु के क्षय होने के इच्छामिन्मैं चाहता हूँ ४२ कारण १३ , इति-समाप्ति-बोधक अव्यय, परिचयाआणुपुबीए-अनुक्रम से, नम्बर वार त्मक अव्यय २०, २७, ६१ इभवर-कन्नगाणं श्रेष्ठ श्रेष्टियो की आपुच्छइ, ति=पूछता है, पूछती है ३६२, ४५, कन्याओ का आपुच्छण-पूछना ८० इमंसि-इनमें आपुच्छणा-धर्म-जिज्ञासा, धर्म के विषय इमासिं-इनमें ____ में पूछना १६ इमे-ये १३, ३२, ८० आपुच्छति-देखो आपुन्छइ इमेणं इससे आपुच्छामि-पूछता हूँ ३६ इमेयारूवे इस प्रकार के आयविल='यविल' नामक एक तप, इसिदासे ऋपिदास कुमार जिसमें रूखा भात या अन्य कोई ईर्या-समिते ईर्या-ममिति वाला, यत्नामासुक धान्य केवल एक ही बार चारपूर्वक चलने वाला ३६, ८६ खाया जाता है ४२, ४५ उकमेणं-उत्क्रम से, उलटे क्रम से, नीचे आयंबिल-परिग्गहिएण='आयविल' से ऊपर नामा तप की रीति से ग्रहण किया उक्खेवओ-आक्षेप, न कहे हर वास्यो हुआ ४२ का पीछे के वाक्यो से आनेप करना ८६ आयवेधूप में उग्गह-अवग्रह, सम्मान, पूजा आदि ७२ भायार-भडए-तप-साधन के उपकरण उच्च०=( उन-मझम-नीच ) उग, मध्यम १३, २० पीर नीच कुलो में भायाहिणं आदक्षिणा ७३ उच्चवगते-ऊँचे गले का पात्र विगेप ६१ आयाहिणं पयाहिणं आदक्षिणा 'पौर उजाणानो-उद्यान मे बगीचे में १६ प्रदक्षिणा उजाग उमान, बगीचा ३.७२ आरण्च्चु प-धारण-ग्यारहवाँ देवलोक ... · उझिय-धम्मिय-निरुपयोगी, ५ र देने पौर 'अच्युत-बारहवाँ देवलोक १३ योग्य आहरनि-भोजन करता है उट्ट पाठ-ॐट का पर आहार भोजन उठाणे-पोठों पी मापारेनि-भोजन करता है. साना ८६. आमिनेका गया है , उग-गीन ति, परिचय या ममामि-भूगर उदर-पेट 'पर ६. उटर-पार IIT, पटना . गार-संगडिया की गार गान भनि शामोरगान मा ५६ 7 .
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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