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________________ तेईस अहिंसा और विज्ञान यदि हम सहज रूप म यह तो विगान मानव शरीर का साथ है और महिंजा मारमा पा। विज्ञान वाह्य तत्त्वा का पोषण करता है तो अहिमा भाम्यन्तरिय तत्वा की पुष्टि करती है। एक पाश्चात्य विचारा का धन हपि विमान न हमारे शरीर की मुविधाएँ बदाइ, नित, नवीन साधन प्रसा धन प्रदान पिये। पर उनस मात्मा को क्या मिला? कुछ नहीं। वास्तव म विधारका उपाक्पन हमार लिए चिमनीय है । माज राष्ट्र के मूधम मनोपिया को इस पर गहगई त विचारना है । ययापि यतमान युग ए. सत्रान्ति काल मम गुजर रहा है कि उसके सम्मुस विविध समस्याएं सही हैं। एप मार विश्वान्ति की समस्या सो दूसरी पार मणु प्रस्त्रा के निर्माण की प्रतिदिना। जिसने राष्ट्र के विचारशील नताप्रा यो चिन्तित बना डाला है। प्राजकोई नो देश मा राष्ट्र निमय प्रतीत नहीं होता। माणगि युद्धा की रिभीपिरामा म सारा विशाल मोर ध्यान है। वह सोता है तो गत दिन पाविर परतारा उपधान नगारर । न जाने पर किपर स पारमण हा जाए मोर पर हम प्रनय से गन में प्रतिप्यान हो जाएं। इस प्रारीपारामागे मानव समान निरन्तरपिराइमा है। इसी मव. दामपमानित मूधयमा० मन्त्रट प्राइस्टाइनोमानम पाह मानव. समार के लिए यह निरताया-- 'हम मार होन फनात मपन मानव अतुपा म अनुरापरत है कि पानी मावानापार र पार धप मर एपर पायरिमान एमा किया त मा मा सानामिनर द्वार गुम जाएगा। यदि प्रारममा रामसार को मारमोन मृसु का सारा पार
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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